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जो कथित विद्वान होता है, वह तर्क वितर्क करता है। न्याय अन्याय, धर्म अधर्म में उलझता है।
उसका निर्णय तब आता है, जब उस निर्णय का महत्व ही नहीं रह जाता।
जो सरल है !
वह धर्म अधर्म, न्याय अन्याय ईश्वर पर छोड़कर तुरंत निर्णय लेता है।
हस्तिनापुर की सभा, वीरों से अधिक विद्वानों की सभा थी।
एक से बढ़कर एक विद्वान, आचार्य, गुरु, मंत्री सब थे।
यह जान रहे थे कि गलत हो रहा है, लेकिन निर्णय नहीं लिये।
उसमें से एक खड़ा हो जाता कि द्रोपदी के साथ दुर्व्यवहार न करो। दुर्योधन में इतनी क्षमता न थी कि कुछ करता।
जटायु जी, वृद्ध हो चले हैं।
वह जगतजननी की आर्द पुकार सुने, उठ खड़े हुये।
वह जान रहे थे कि रावण के पास इतनी शक्ति है कि मार देगा।
लेकिन उन्होंने रावण को ललकारा।
हे पुत्री, मैं आ रहा हूँ।
इस पापी को अभी यमलोक पहुँचाता हूँ।
घनघोर युद्ध किये।
युद्ध उनके पक्ष में भी था।
चंद्रहास से पंख कट गये।
राम राम कहते नीचे आ गिरे।
परिणति क्या हुई.........................? ?