अभी तक लोग हमारा (जाट) इतिहास चुराते थे पहली बार किसी सरकार ने चुराया है मंदसौर (मध्यप्रदेश) मेँ "जाट सम्राट यशोधर्म" जी की मूर्ति स्थापना पर उनको जाट नहीं "ब्राह्मण " बताया है जो की "इतिहास" के हर पन्ने पर "जाट सम्राट" लिखा है.....
यशोधर्म : ठाकुर देशराज
इतिहासकार ठाकुर देशराज जी [15] ने लिखा है ...
यशोधर्म - यह मंदसौर में राज्य करते थे। वहां पर इनका स्तूप है। इनके पिता का नाम विष्णुवर्धन था। इनका राज्य मंदसौर से लगाकर बयाना तक था। बयाना में भी एक लाट है वह महाराजा विष्णुवर्धन की स्थापना की हुई है। यह वरिक गोत्र के जाट थे। महाराजा यशोधर्मन ने प्रबल आक्रांता हूणों को कई बार खदेड़ा था और अपनी जिंदगी में उन्हें कश्मीर से नीचे नहीं उतरने दिया। अजय जर्टो हूणान इनकी लड़ाइयों के कारण प्रसिद्ध हुआ था। लोग इन्हें दूसरा विक्रमादित्य समझते थे।
Victory pillar of Yashodharman at Sondani, Mandsaur
इतिहासकार ठाकुर देशराज लिखते हैं कि भारत क्या, संसार के इतिहास में हूणों के आक्रमण प्रसिद्ध हैं। इन्होंने यूरोप और एशिया दोनो ही जगह उथल-पुथल मचा दी थी। जाट-जाति के लिए यह सर्वत्र नाशकारी सिद्ध हुए। किन्तु यूरोप और एशिया दोनो ही स्थानों पर जाटों ने इनकी शक्ति का सामना किया। यद्यपि जाट भी इनके युद्धों में क्षीणबल हो गए, किन्तु उन्होंने हूणों के बढ़ते हुए प्रभाव को इतना धक्का पहुंचाया कि आज हूणों की न कोई स्वतंत्र जाति है और न राज्य। सुदूर कश्मीर में अवश्य कुछ दिन उनका राज्य रहा। यूरोप को रोंदते हुए इनका दल जब रोम पहुंचा तो वहां के गाथ (जाट) योद्धाओं ने ऐसा लोहा बजाया कि उन्हें उलटे पैरों लौटना पड़ा। भारत में आने पर भी जल-प्रलय की भांति जब ये आगे बढ़ने लगे तो मध्य-भारत के अधीश्वर महाराजा यशोधर्मा ने इनको ऐसा खदेड़ा कि कश्मीर में जाकर दम लिया।
यशोधर्मा के समय के तीन शिलालेख्स प्राप्त हुए हैं। ये तीनों ही मन्दसौर में पाए गए हैं। इनमें एक शिलालेख मालव संवत् 589 ईसवी (सन् 532) का है ।।
Ajay jarto Huna.
8 अक्टूबर 528 AD को हूणों को पर विजय प्राप्त की 💪💪💪💪💪💪💪💪💪

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