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जानी LLB एक फ़िल्म आई थी। उसमें कार एक्सीडेंट से मजदूरों की मौत हो गई थी।
कोर्ट की सुनवाई में जो बड़े वकील थे बोमन , वह सिद्ध कर रहे थे, कार नहीं, ट्रक थी।
उसमें एक डायलॉग था।
जनाब, दीवान साहब कुछ दिन में ट्रक को ट्रेन भी साबित कर सकते है।
सामाजिक विज्ञानी अकबरनामा पढ़ते पढ़ते इतने खो गये थे, कि तुर्को, मुगलों को अत्याचारी मानने को तैयार नहीं थे।
बकौल वामी इतिहासकारों अकबर उदार था। फिर उसी अकबर कि ही बात कर लेते है।
अंग्रेजों से लेकर विदेशी लेखकों ने एक महान योद्धा का बहुत वर्णन किया है।
वह है, चितौड़ के सेनापति जयमल राठौड़ । उनकी वीरता के लोकगीत राजस्थान , हरियाणा से लेकर उत्तरप्रदेश तक सुने जा सकते है।
जयमल राठौड़ से ही पता चल जायेगा, अकबर कितने उदार थे।
संक्षेप में इतिहास कुछ इस तरह है।
24 अक्टूबर 1567 को अकबर ने चितौड़गढ़ पर हमला कर दिया। इस पूरी मुगल सेना का नेतृत्व अकबर कर रहा था। 80 हजार मुगल सैनिक, तोप, 10 हजार घुड़सवार इतनी विशाल सेना के सामने चितौड़गढ़ को लड़ना था।
उदयसिंह ने जयमल राठौड़ को सेनापति बनाया। भविष्य में युद्घ चलता रहे वह किले से निकल गये।
8 हजार राजपूत योद्धा किले के अंदर थे। किले के दरवाजे को बंद कर दिया गया।
5 महीने तक किले को मुगल सेना ने घेरे रखा। वह किले के नीचे से सुरंग बनाते, राजपूत उसे तोड़ देते। एक बार सुरंग बनाते समय बारूदी विस्फोटक में अकबर के कई सरदार मारे गये।
लेकिन एक दिन अनहोनी हो गई। कुछ लोग मानते है, यह ख्वाज मोईदिन चिश्ती की दरगाह से बताया गया था। लेकिन हम इस कांस्पिरेसी में नहीं पड़ते है।
अनहोनी यह थी कि रात्रि में जयमल राठौड़ जब किले ठीक को करा रहे थे, उसी समय उनके पैर में एक गोली आ लगी। धीरे धीरे पैर में सड़न भी होने लगी। रसद की भी कमी किले में होने लगी।
राजपूतों ने सीधे युद्ध के लिये किले को खोलने का निर्णय लिया।
रात्रि में क्षत्रियों ने जौहर किया।
सुबह उसी राख का तिलक लगाकर राजपूत युद्ध के लिये तैयार हुये।
जयमल राठौड़ का पैर इतना जख्मी हो चुका था कि वह घुड़सवारी नहीं कर सकते थे। अपने भतीजे कल्ला राठौड़ के कंधे पर चढ़कर उन्होंने युद्घ का नेतृत्व किया।
8 हजार राजपूत, 80 हजार मुगल आमने सामने थे।
25 फ़रवरी 1568 को किले के फाटक खोले गये।
एक ऐसा महासंग्राम जिसकी मिसाल मिलना मुश्किल है।
8 हजार राजपूतों ने, 40 हजार मुगलों को काट डाला। एक अंग्रेज लेखक कर्नल जर्मस्ट ने 60 हजार लिखा है।
सभी राजपूत अपनी मातृभूमि कि रक्षा करते हुये, वीरगति पा गये।
अकबर सभी बड़े सरदार, सैनिक इस युद्ध मे मारे गये। वह तुर्क इतना बौखला गया कि असहाय, निर्दोष, निहत्थी उदयपुर कि जनता का कत्लेआम का आदेश दे दिया।
अपने रक्षकों के बिना,
30 हजार निर्दोष नागरिक, बच्चे, स्त्रियां मारी गई। यह कत्लेआम, मानव इतिहास में सबसे जघन्य अपराधों में से एक है।
यह कार्य तो कोई कायर, नपुंसक ही कर सकता है।
युद्ध के निर्णय, युद्धभूमि में होते है। निर्दोष नागरिकों की हत्या करके नहीं होते।
अब विज्ञानियों को क्या कहे! इन्हें कायर भी तो नहीं कह सकते।
लेकिन इतने साहसी अवश्य बनिये कि अपने उद्देश्य को पाने के लिये झूठ का सहारा न लीजिये।
जयमल राठौड़ कंधे पर चढ़कर युद्ध किये, कोई ऐसा उदाहरण कहा मिल सकते है।
मैं इतिहास को सम्मान कि दृष्टि से देखता हूँ। उनका आदर है और रहेगा जिन्होंने इस राष्ट्र और धर्म कि रक्षा के लिये प्राण दे दिये।
लेकिन इतिहास में जीना नहीं चाहिये,
उसका उपयोग अपने स्वार्थ के लिये करना, उतना ही बड़ा अपराध है। जो तुर्क, मुगल करके गये है।
भारत सरकार ने जयमल राठौड़ के सम्मान में 2021 में एक डाकटिकट जारी किया था।

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