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उदारता क्या है ?

किसी अन्य की परिस्थितियों को ठीक से समझना है !
जैसे कि उस परिस्थिति में आप हैं। यही उदारता कही जाती है।
लेकिन हम निंदा करते हैं या क्रोध करते हैं,
या फिर उदासीन हो जाते हैं।
भगवान राघवेंद्र के कितने नाम हैं। ज्ञानी अपने तरह से, भक्त अपनी तरह से नाम भजते हैं और व्याख्या करते हैं।

वाल्मीकि जी ने उन्हें मर्यादापुरुषोत्तम राम कहा है।
यह संज्ञा नहीं, विशेषण है। कदाचित सबसे सुंदर है।
मुझे बहुत प्रिय है।

एक प्रसंग है। लेख के प्रारंभ में बात हो रही थी
कि उदारता क्या है??

जिस समय मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम को
यह सूचना दी गई कि उन्हें वन जाना है।
राज्यप्रसाद से लेकर प्रजाजन तक कोहराम मच गया।
महाराज दशरथ, रानी कैकेयी से अनुनय विनय करने के बाद जब वह टस से मस नहीं हुईं तो महल में पीड़ा, अर्धविक्षिप्त अवस्था पड़े हैं।
लेकिन एक तरह से आज्ञा तो उन्हीं की है। उन्होंने वर दिया है।
लक्ष्मण जी क्रोध में अपने पिता के पास जाते हैं।
बहुत भला बुरा बोलते हैं। एक पिता होकर आप यह सब कर रहे हैं। यह अन्याय, अपराध है।
भगवान राम, लक्ष्मण को कहते हैं।
यह क्या अनर्गल प्रलाप और निराधार आरोप लगा रहे हो।
उनसे पूछो जिनके सामने रघुवंश कि मर्यादा है। दूसरी तरफ उनका प्राणों से प्रिय पुत्र है। जिसको वह वन भेज रहे हैं।
इस पीड़ा को मोहरहित देवता भी सहन नहीं कर सकते हैं। दोनों ही परिस्थितियों में उनका जीवन निष्प्राण हो जायेगा।
मेरे पिता ऐसे धर्मात्मा है। जो धर्म को पुत्र के समान ही समझ रहें हैं। ऐसे लोग बार बार पृथ्वी पर जन्म नहीं लेते। लक्ष्मण तुम सौभाग्यशाली हो जो उनके पुत्र हो। उनके आशीर्वाद में ही मोक्ष है।

अपने पिता की परिस्थितियों को कितनी सूक्ष्मता से मर्यादापुरुषोत्तम राम देख रहे हैं। इसे ही उदारता कहते हैं।
हम किसी कि परिस्थितियों को जब ठीक से समझते हैं, तभी न्याय कर सकतें हैं। उदारता, बिना न्याय के अपूर्ण है।

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