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"सालों पहले जब लोगों के घरों में खाना बनाने का काम छोड़कर केटरिंग का काम शुरू किया था; तब शहर में ज़्यादातर केटरिंग बिज़नेस पुरुष ही चलाते थे। मुझे परिवार और समाज से कई तरह के विरोध का सामना भी करना पड़ा था। एक समय में मुझे अपने बेटे के लिए लड़की ढूंढने में भी दिक्क्त हो रही थी, क्योंकि कोई भी अपनी बेटी को ऐसे परिवार में देने को तैयार नहीं था, जहां घर की महिला केटरर का काम करती हो। बावजूद इसके मैंने इस काम को कभी नहीं छोड़ा।”
-संतोषीनी मिश्रा
70 के बाद जब हर कोई रिटायर होकर आराम करना चाहता है, उस उम्र में संबलपुर (ओडिशा) की संतोषीनी मिश्रा अपना केटरिंग बिज़नेस चला रही हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने कई और ज़रूरतमंदों को रोज़गार भी दिया है और आज वह आत्मनिर्भर हैं। संतोषीनी दादी ने 40 सालों तक अपने परिवार की खराब आर्थिक स्थिति से निपटने के लिए दूसरे घरों में जा-जाकर काम किया। उनके पति पान की दुकान चलाते थे, लेकिन एक गंभीर बिमारी हो जाने की वजह से पहले उनका काम बंद हुआ और फिर निधन हो गया। तब मजबूरी में संतोषिनी को परिवार के लिए काम शुरू करना पड़ा था। तब से अब वह अपने पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी संभाल रही हैं।
काफ़ी संघर्षों के बाद उनका खाना पकाने का काम आज एक कैटरिंग बिज़नेस में बदल गया है। इस दौरान उन्हें कई मुश्किलों और समाज के तानों का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने सकारात्मक रहकर अपना काम जारी रखा। आज करीब 75 की उम्र में वह अपने कैटरिंग बिज़नेस से 100 से ज़्यादा लोगों को रोज़गार दे रही हैं! उनके बेटे उन्हें काम छोड़कर आराम करने को कहते हैं, लेकिन जब तक जान है, संतोषिनी तब तक इस काम से जुड़ी रहना चाहती हैं।
वाह! जज़्बा और हिम्मत हो तो इनकी तरह

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