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कश्मीर के कछवाहा
मुगल काल में कश्मीर एक मुसलमान वंश के अधिकार में था।
ईसवी 1586 में कश्मीर के सुल्तान यूसुफ खां के विरुद्ध आमेर के राजा भगवानदास जी को बादशाह अकबर ने भेजा।
उसने 28 मार्च ईस्वी 1586 को सुल्तान को लाकर बादशाह के सामने हाजिर किया तब कश्मीर मुगल साम्राज्य का भाग बन गया।
उस आक्रमण में राजा भगवानदास जी के साथ उनके काका जगमाल का पुत्र रामचंद्र भी था।
कश्मीर को साम्राज्य में मिलाने पर रामचंद्र की नियुक्ति की गई, तथा वही उनको जागीर भी मिली इस प्रकार कश्मीर के कछवाह वंश के रामचंद्र प्रवर्तक हुए ।
रामचंद्र के पिता जगमाल जी आमेर नरेश पृथ्वीराज के पुत्र थे उनको बादशाह ने नारायणा जागीर में दिया था रामचंद्र का 500 का मनसब प्रदान किया।
उसने अपनी कुलदेवी जमवाय माता के नाम पर जम्मू शहर बसाया इनके वंशज मीरपुर में रहे। साथ ही जमवाय माता का मंदिर भी बनवाया।
इन्होंने कश्मीर के पश्चिम में भारत - पाक सीमा पर रामगढ़ गांव भी बसाया।
यह डोगरा प्रदेश होने से वे भी डोगरा कहलाने लगे।
वैसे यह जगमालोत कछवाहा है फिर इनकी एक शाखा कांगड़ा और एक चंबा गई बाद में की कई शाखाएं हुई
रामचंद्र के बाद क्रमशः सुमेहल देव, संग्राम देव, हरिदेव, पृथ्वीसिंह, गजेसिंह, ध्रुव, सूरत सिंह, जोरावर सिंह, किशोर सिंह, और गुलाब सिंह हुए।
गुलाब सिंह के समय में सिख सेना ने जम्मू पर आक्रमण किया इन्होंने उस आक्रमण का बड़ी वीरता से मुकाबला किया इनकी इस वीरता से महाराज रणजीतसिंह बड़ा प्रभावित हुआ।
उन्हें अपनी सेना में रख लिया, इनका एक भाई महाराज रणजीतसिंह का दीवान हुआ। महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद सिख साम्राज्य बुरा हाल हो गया।
अंग्रेजों से उनके जो युद्ध हुए उनमें प्रारंभ में तो वे जीते परंतु बाद में उनकी पराजय हुई।
अंग्रेजों ने लाहौर को घेर लिया तब गुलाब सिंह को मध्यस्त करके अंग्रेजों से संधि हुई ।
उसके अनुसार कश्मीर और हुजा सिख राज्य अंग्रेजों को दे दिया गया बाद में अंग्रेजों ने कश्मीर गुलाब सिंह को बेच दिया और उसे अलग राज्य मान लिया गया ।
गुलाब सिंह के बाद रणवीर सिंह, प्रताप सिंह, हरि सिंह और करण सिंह कश्मीर के शासक हुए।
महाराजा गुलाब सिंह जी के पराक्रमी पुत्र रणवीर सिंह जी ने कश्मीर में दंड संहिता लागू की जो आज भी प्रचलन में है।
इनकी वीरता पर एक दोहा इस प्रकार है -
अंग्रैजां आदर नहीं, ये राजा रणवीर।
केहर गळ को कांठलो, कर राख्याे कश्मीर।।
अर्थात : राजा रणवीर धन्य है जिन्होंने अंग्रेजों कि तनिक परवाह नहीं करता। उन्होंने कश्मीर को सिंह के गले का कंठा बना कर रखा कि कोई इसकी और आंख उठा कर नहीं देख सकता ।
1947 में भारत के आजाद होने व 565 रियासतों के एकीकरण के समय कश्मीर को सबसे बड़ी रियासत का सौभाग्य मिला। एकीकरण के समय यहां के राजा हरि सिंह जी थे।
प्रोफेसर राघवेन्द्र सिंह मनोहर लिखते है कि कश्मीर महाराजाओं का संपर्क आजादी बाद तक ढुंढा़ड के कछवाहों से बना रहा।
महाराजा हरि सिंह जी एक बार खंगारोत ( कछवाहा ) के ठिकाने जोबनेर पधारे और राव नरेंद्र सिंह जी जोबनेर के साथ एक थाली में भोजन किया ।
महाराजा मान सिंह जी द्वितीय के राजतिलक समारोह में भी हरी सिंह जी उपस्थित हुए।
आजादी बाद हरी सिंह जी के पुत्र महाराजा करण सिंह जी को कश्मीर का सदरे रियासत बनाया गया। इसके बाद कश्मीर केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी इंदिरा गांधी की प्रधानमंत्रीत्व में वे मंत्री रहे।
यह बड़े विद्वान थे उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी है।
कश्मीर में कछवाह की शाखाएं - जमवाल, मनकोटिया जसरोटिया, भाऊ, समियाल, सल्हाथिया, दलपतिये, नाराणिये, वीरपुरिया मनहास आदी है।

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