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यदि मुगलों के शासन में औरंगजेब न आता तो मुगल का अंत इतनी तेजी से न होता।
हजारों मंदिरों को तोड़कर उसने थक चुके समाज को उसका पौरुष याद दिला दिया।
मुगलों का विनाश ऐसे हुआ जैसे रेत का पहाड़ , तूफान में उड़ जाता है।
जब मुगल सल्तनत के अंत के कारणों को खोजा जाता है।
इतिहासकार औरंगजेब की भूमिका को प्राथमिक मानते है।
औरंगजेब कि कट्टरपंथी नीति के विरुद्ध संपूर्ण भारत में विद्रोह हुआ। नेतृत्व अवश्य क्षत्रियों और मराठों के हाथ में था लेकिन इस विद्रोह में हर वर्ग सम्मलित हुआ।
उत्तर , दक्षिण , पूरब पश्चिम हर तरफ युद्ध हो रहे थे।
युद्घ में भागते दौड़ते औरंगजेब को दिल्ली की मिट्टी भी नसीब नहीं हुई।
औरंगजेब के बाद जो भी मुगल सत्ता में आये उनको धधकते भारत का सामना करना पड़ा। इनके शासन कि सीमाएं पल्लम तक सीमित हो गई।
कट्टरता के विरुद्ध भारत सैदव लड़ा है। बड़े बड़े आक्रमणकारियों और शासकों को ध्वस्त किया है।
यहां बनी कब्रे और उनके वंशजो की दुर्दशा इसकी गवाह है।
1947 में गाँधी जी ने भारतीय जनमानस के साथ विश्वासघात किया। यह घोषणा करके कि भारत का विभाजन हमारी लाश पर होगा। बाद में रात के अंधेरे में कांग्रेस ने विभाजन का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
संघर्ष से थक चुका समाज आवक , स्तब्ध रह गया। जो भारत हजार साल तक कट्टरता , अत्याचार के सामने घुटने नहीं टेका, वह विश्वासघात से विभाजित हो गया।
यह शिक्षा है ! जब कट्टरता से लड़े तो अपने जीवन मूल्यों के साथ छद्मम छवियों से सावधान रहे । जो अपनी कायरता को अहिंसा , उदारता , प्रगतिशीलता का आडंबर ओढ़ते है।।