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पुस्तक समीक्षा/ डा. रवीन्द्र अरजरिया

'अन्तस की करवटें' : सामाजिक पीडा से साक्षात्कार

जीवन की सतरंगी आभा से कहीं दूर बैठकर सांसों ने पीडा से संवाद स्थापित किया होगा, समाज के खोखले दावों से प्रमाण मांगा होगा, बाहरी चमक-दमक के पीछे झांकने का प्रयास किया होगा तब कहीं जाकर रजनी चतुर्वेदी को अनुभवों हुईं होगीं 'अन्तस की करवटें'। बाहर से भव्य दिखने-दिखाने वाले महलों की नींव में दफन रक्तरंजित समझौतों को खोजते, उसे उजागर करने का साहस जुटाते और फिर खुलेआम समाज के स्वयं-भू ठेकेदारों को चुनौती देते 68 कथानकों को मूर्तरूप देने वाली कृति ने अपनी हर करवट पर समाज के कडुवे सच को उजागर किया है। लघुकथा संग्रह में लेखिका ने विभिन्न संदर्भों के छुपे पक्ष को रेखांकित नहीं किया बल्कि नूतन परिदृश्य में पैर रखने वालों को सचेत भी किया है। कलम की साधना करने वाली लेखिका ने 'अन्तस की करवटें' के माध्यम से देखे, सुने और अनुभव किये खट्टे-मीठे कारकों को बानगी के रूप में समाज के सामने परोसा है। कहीं पारिवारिक संरचना के पुरातन मापदण्ड के साथ जुडे पूर्वाग्रह को उजागर किया तो कहीं सामाजिक व्यवस्था के दोहरे मापदण्डों पर प्रहार किया। कहीं कथित बुध्दिजीवियों की मानसिकता और व्यवहार का झिझोरापन सशक्त कलम को विलासता पर निछावर होने के लिए बाध्य करता दिखा तो कहीं मझली बहू होना ही प्रताडना का पर्याय बन गया। कहीं जीवन के अन्तिम सोपान पर पश्चाताप की पीडा दिखाई दी तो कहीं अंग्रेजियत पर कुबान होती राष्ट्र भाषा मिली। कृति के हर पेज पर समाज के एक नये पक्ष ने दस्तक दी है। लघुकथा लेखन की अनेक शैलियों का प्रयोग किया गया है जो पाठकों को अन्त तक बांधे रखता है। बी.आर.ए. विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर के हिन्दी विभागाध्यक्ष सतीश कुमार राय की भूमिका ने गागर में सागर भरने की कहावत को चरितार्थ किया है। सरल भाषा में गम्भीर विवेचना को परिचयात्मकस्वरूप में प्रस्तुत करके हिन्दी के जानेमाने हस्ताक्षर श्री राय ने संवेदनशील लेखिका रजनी चतुर्वेदी की कलम के विभिन्न पक्षों को कम शब्दों में ही उजागर किया है। कृति की करवटें हर नये पेज पर पाठक को अन्दर तक झकझोर देतीं हैं।

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