श्रीरामचरितमानस - विचार
कपटी कायर कुमति कुजाती ।
लोक बेद बाहेर सब भाँती ।।
राम कीन्ह आपन जबही तें ।
भयउँ भुवन भूषन तबही तें ।।
( अयोध्याकाण्ड 195/1 )
चित्रकूट जाते समय भरत जी की भेंट निषादराज से होती है । भरत निषादराज को गले लगाते हैं । निषादराज भरत जी से कहते हैं कि आपका दर्शन पाकर मैंने तीनों काल में अपना कुशल जान लिया । मैं कपटी , कायर , कुबुद्धि और कुजाति हूँ तथा लोक - वेद दोनों से सब प्रकार से बाहर हूँ पर राम जी ने जबसे मुझे अपनाया है तभी से मैं विश्व का भूषण हो गया हूँ ।
आप अपनी अल्पता, क्षुद्रता व लघुता का विचार न करें बस कोशिश करें कि राम जी आपको अपना लें , अपना बना लें । राम जी के अपनाते ही सारा जगत् आपको अपना बना लेगा , अपने सिर पर बैठा लेगा । पर राम जी तो सेवा व प्रेम से रीझते हैं । अतएव ! राम प्रेम पाने के लिए राम जी से प्रेम करते हुए राम सेवा में लगें ।
जय राम , जय राम , जय जय राम ।
आपका दासानुदास सेवक
दयानिधि शरण (दिग्विजय)

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