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ज्यादातर हिंदुओं को यह बात पता ही नहीं कि उनकी पुश्तैनी संपत्ति या उनके द्वारा अर्जित संपत्ति को कभी भी वक्फ बोर्ड अपना कह सकता है और वक्फ बोर्ड के इस दावे के विरुद्ध आप किसी भी कोर्ट में नहीं जा सकते।

वक्फ अधिनियम पहली बार 1954 में संसद द्वारा पारित किया गया था। इसके बाद इसे निरस्त कर दिया गया और 1995 में एक नया वक्फ अधिनियम पारित किया गया जिसने वक्फ बोर्डों को अधिक शक्तियां प्रदान कीं।

2013 में, वक्फ बोर्डों को किसी की संपत्ति छीनने की असीमित शक्तियां देने के लिए इस अधिनियम में और संशोधन किया गया, जिसे किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती थी।

मार्च 2014 में, लोकसभा चुनाव शुरू होने से ठीक पहले, कांग्रेस ने इस कानून का उपयोग करके दिल्ली में 123 प्रमुख संपत्तियों को दिल्ली वक्फ बोर्ड को उपहार में दे दिया। इस काले कानून के कारण अब तक देश में हिंदुओं की हजारों एकड़ जमीन छीन ली गई है। हाल ही में तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने 1500 साल पुराने हिंदू मंदिर समेत तमिलनाडु के 6 गांवों को वक्फ संपत्ति घोषित किया है।

सीधे शब्दों में कहें तो वक्फ बोर्ड के पास मुस्लिम दान के नाम पर संपत्तियों पर दावा करने की असीमित शक्तियां हैं। लेकिन इसे ये अधिकार कैसे मिला, ये समझने के लिए हमें इतिहास के पन्ने पलटने होंगे।

दरअसल बंटवारे के बाद पाकिस्तान से जो हिंदू भारत आए, उनकी पाकिस्तान में मौजूद संपत्तियों पर मुसलमानों और पाकिस्तान सरकार ने कब्ज़ा कर लिया। लेकिन भारत से पाकिस्तान गए मुसलमानों की जमीन भारत सरकार ने वक्फ बोर्ड को दे दी। जिसके बाद साल 1954 में वक्फ बोर्ड एक्ट बनाया गया। लेकिन साल 1995 में वक्फ बोर्ड एक्ट में बदलाव कर वक्फ बोर्डों को जमीन अधिग्रहण के असीमित अधिकार दे दिए गए। जिसके बाद वक्फ बोर्ड की संपत्ति में इजाफा हुआ।

वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक, इस समय वक्फ बोर्ड के पास कुल 8,54,509 संपत्तियां हैं जो आठ लाख एकड़ से ज्यादा जमीन पर फैली हुई हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि सेना और रेलवे के बाद सबसे ज्यादा जमीन वक्फ बोर्ड के पास है।

साल 2009 में वक्फ बोर्ड की संपत्तियां चार लाख एकड़ जमीन पर फैली हुई थीं। जो अब दोगुना से भी ज्यादा हो गया है। जबकि देश में जमीन वैसी ही है जैसी पहले थी। तो वक्फ बोर्ड की जमीन कैसे बढ़ रही है? वक्फ बोर्ड देश में जहां भी कब्रिस्तान की बाउंड्रीवाल कराता है, उसके आसपास की जमीन को अपनी संपत्ति मानता है। इसी तरह धीरे धीरे अवैध धर्मस्थलों और मस्जिदों को भी वक्फ बोर्ड अपनी संपत्ति घोषित कर देता है। आसान भाषा में लोग इसे अतिक्रमण कहते हैं और इस अतिक्रमण का अधिकार वक्फ बोर्ड को मिला हुआ है।

वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 3 में कहा गया है कि यदि वक्फ "सोचता है" कि भूमि किसी मुस्लिम की है, तो यह वक्फ की संपत्ति है। यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि सिर्फ "वक्फ के बारे में सोचना" ही काफी है, इसके लिए वक्फ बोर्ड को किसी सबूत की जरूरत नहीं है। अगर वक्फ मान लेता है कि आपकी संपत्ति आपकी नहीं बल्कि वक्फ बोर्ड की है तो आप कोर्ट भी नहीं जा सकते। आप वक्फ ट्रिब्यूनल कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।

वक्फ अधिनियम की धारा 85 में कहा गया है कि यदि आप वक्फ बोर्ड ट्रिब्यूनल को संतुष्ट नहीं कर सकते कि यह आपकी अपनी जमीन है, तो आपको जमीन खाली करने का आदेश दिया जाएगा। ट्रिब्यूनल का निर्णय अंतिम होगा। कोई भी अदालत, यहां तक ​​कि सुप्रीम कोर्ट भी, वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले को नहीं बदल सकती।

वक्फ अधिनियम की धारा 40 में कहा गया है कि जब वक्फ बोर्ड किसी व्यक्ति की जमीन पर दावा करता है तो जमीन पर दावा साबित करने की जिम्मेदारी वक्फ बोर्ड की नहीं होती है, बल्कि जमीन के असली मालिक को यह साबित करना होता है कि भूमि का स्वामित्व उसका है।

यानी अगर वक्फ बोर्ड किसी जमीन पर दावा करता है तो समझ लें कि वक्फ बोर्ड उस जमीन का मालिक बन गया है।

भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में वक्फ एक्ट जैसा धार्मिक कानून कैसे लागू हो गया? सवाल यह है कि हिंदुओं, ईसाइयों और सिखों के लिए ऐसा कोई अधिनियम क्यों नहीं है? सिर्फ मुसलमानों के लिए ही क्यों? विडम्बना देखिये कि वर्ष 1991 में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट बनाया गया जिसमें कहा गया कि देश की आजादी के समय जो धार्मिक स्थल मौजूद थे, उन्हें वैसे ही रखा जायेगा। वहीं, 1995 में वक्फ एक्ट लागू होता है, जो देशभर के वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति पर अपना हक जताने का अधिकार देता है और पीड़ित पक्ष इसके खिलाफ देश की किसी भी अदालत में अपील भी नहीं कर सकता।

देश की आजादी के समय जो धार्मिक स्थल मौजूद थे, उन्हें वैसे ही रखा जाएगा। वहीं, 1995 में वक्फ अधिनियम लागू होता है, जो पूरे देश में वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति पर अपना हक जताने का अधिकार देता है और पीड़ित पक्ष इसके खिलाफ देश की किसी भी अदालत में अपील भी नहीं कर सकता है।

सुनने में अजीब लगता है कि एक सेक्युलर देश में ऐसा एक्ट है, जबकि किसी मुस्लिम देश में ऐसा कोई एक्ट नहीं है। तुर्की, लीबिया, मिस्र, सूडान, लेबनान, सीरिया, जॉर्डन और इराक जैसे मुस्लिम देशों में न तो वक्फ बोर्ड है और न ही वक्फ कानून। भारत में भी वक्फ कानून के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। सरकार को वक्फ अधिनियम को निरस्त करना चाहिए क्योंकि यह स्पष्ट रूप से असंवैधानिक है।

कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों द्वारा भारत में वक्फ बोर्ड जैसे कानून धीरे-धीरे बनाए जा रहे थे कि अगले आने वाले 20-30 वर्षों में भारत को पूर्ण रूप से मुस्लिम राष्ट्र बनाया जा सके।

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