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शत्रुघ्न सिन्हा हमेशा से ही मेहनती और हठी पुरुष रहे।
फ़िल्म इंडस्ट्री में आने से लेकर पहली लीड हीरो के तौर पर मिली कामयाबी तक, शत्रु-जी ने बहुत मेहनत बहुत संघर्ष किया और ऐसे कामयाब हुए कि सब तिलमिला गए।
पर मेहनती आदमी को जब कामयाबी मिल जाए तो उसमें स्वाभाविक घमंड आ जाता है। ये घमंड कई बार इतना बढ़ जाता है कि जब प्रेस वाले पूछते हैं कि “अमिताभ जी के साथ आपकी फिल्म...”
तो अगला सवाल सुनने से पहले ही पूछ लेता है “कौन अमिताभ बच्चन?”
ये कौन अमिताभ बच्चन सवाल नहीं एक टॉन्ट बनकर बाज़ार में घूमता है वक़्त बदलने लगता है।
फ़िल्म इंडस्ट्री में एक टाइम ऐसा आया था कि यहाँ धीरे-धीरे उन actors से किनारे किया जाने लगा था जो फिल्ममेकिंग के अलावा अपने हर पर्सनल काम को ज़रूरी समझते थे।
शत्रुजी ने तो एक इंटरव्यू में खुद कहा था कि मैं 2 से ढाई के आसपास सेट पर पहुँचता था। हालाँकि घर से सुबह ही निकल जाता था।
तो ये बीच का टाइम कहाँ जाता था?
इस बीच के स्किप हुए टाइम के चलते घर में क्लेश भी होता है, रिश्ते बिगड़ने भी लगते हैं लेकिन कोई बात नहीं, बड़े एक्टर्स, बड़े लोग समय के साथ-साथ अपने किरदार बदल लेते हैं। रूठने वालों को मना लेते हैं।
जब अभिनेता न रहे तो शत्रुजी नेतानगरी में आ आ गए और सिनेमा की ही तरह, यहाँ भी सफ़ल रहे। अटल जी के समय में ढेर सम्मान और एक मंत्रीपद भी मिला। पर जो रोज़ी-रोटी के लिए सेट पर टाइम से न पहुँचता हो वो सदन में रेगुलर कैसे पहुँच सकता था?
अब जो लापरवाही के चलते मौजूदा सरकार ने किनारा करना शुरु किया कि अपनी ही पार्टी के खिलाफ़ कुछ भी बोल देने वाले पहले नेता बने शत्रु जी। फिर जब टिकेट न मिला तो जिस पार्टी को कोसते थे, उसी से हाथ मिला लिया।

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