https://www.facebook.com/group....s/711132219674492/po
Комментарий успешно передан.
Сообщение было успешно добавлено на ваш график!
Вы достигли своего предела 5000 друзей!
Ошибка размера файла: файл превышает допустимый предел (92 MB) и не может быть загружен.
Ваше видео обрабатывается, мы сообщим вам, когда он будет готов к просмотру.
Не удалось загрузить файл. Этот тип файла не поддерживается.
Мы обнаружили контент для взрослых на загруженном вами изображении, поэтому мы отклонили процесс загрузки.
Чтобы загрузить изображения, видео и аудио файлы, вы должны перейти на профессиональный член. Обновление до Pro
Neeraj Mahajan
एक मुस्लिम लेखिका ने
हिन्दू समाज के लोगों के गालों पर
कैसा करारा थप्पड़ मारा है, जरा देखिए 👇
{01}
आपकी विवाहित महिलाओं ने माथे पर पल्लू तो छोड़िये,
साड़ी पहनना तक छोड़ दिया ... दुपट्टा भी गायब ?
किसने रोका है उन्हें ?
हमने तो तुम्हारा अधोपतन नहीं किया ..
हम मुसलमान तो इसके जिम्मेदार नहीं हैं ?
{02}
तिलक बिन्दी तो आपकी पहचान हुआ करती थी न..
तुम लोग कोरा मस्तक और सूने कपाल को तो
अशुभ, अमङ्गल और शोकाकुल होने का चिह्न मानते थे न ।
आपने घर से निकलने से पहले तिलक लगाना तो छोड़ा ही,
आपकी महिलाओं ने भी आधुनिकता और फैशन के चक्कर में और फॉरवर्ड दिखने की होड़ में माथे पर बिन्दी लगाना तक छोड़ दिया, यहाँ मुसलमान कहाँ दोषी हैं ?
{03}
आप लोग विवाह, सगाई जैसे सँस्कारों में
पारम्परिक परिधान छोड़ कर....
लज्जाविहीन प्री-वेडिङ्ग जैसी फूहड़ रस्में करने लगे
और जन्मदिवस, वर्षगाँठ जैसे अवसरों को ईसाई बर्थ-डे
और एनिवर्सरी में बदल दिया, तो क्या यह हमारी त्रुटि है ?
{04}
हमारे यहाँ बच्चा जब चलना सीखता है
तो बाप की ऊँगलियाँ पकड़ कर
इबादत/नमाज के लिए मस्ज़िद जाता है और
जीवन भर इबादत/नमाज को अपना फर्ज़ समझता है,
आप लोगों ने तो स्वयं ही मन्दिरों में जाना 🛕 छोड़ दिया ।
जाते भी हैं तो केवल ५ - १० मिनट के लिए तब,
जब भगवान से कुछ माँगना हो
अथवा किसी सङ्कट से छुटकारा पाना हो ।
अब यदि आपके बच्चे ये सब नहीं जानते - करते
कि मन्दिर में क्यों जाना है ?
वहाँ जा कर क्या करना है ?
और ईश्वर की उपासना उनका कर्तव्य है ....
तो क्या ये सब हमारा दोष है ❓
{05}
आपके बच्चे
कॉण्वेण्ट ✝️ से पढ़ने के बाद पोयम सुनाते हैं
तो आपका सर गर्व से ऊँचा होता है !
होना तो यह चाहिये कि वे बच्चे नवकार मन्त्र या
कोई श्लोक याद कर सुनाते तो आपको गर्व होता !
... इसके उलट, जब आज वे नहीं सुना पाते तो
न तो आपके मन में इस बात की कोई ग्लानि है,
और न ही इस बात पर आपको कोई खेद है !
हमारे घरों में किसी बाप का सिर तब शर्म से झुक जाता है
जब उसका बच्चा रिश्तेदारों के सामने
कोई दुआ नहीं सुना पाता !
हमारे घरों में बच्चा बोलना सीखता है तो हम सिखाते हैं
कि सलाम करना सीखो बड़ों से ।
आप लोगों ने प्रणाम और नमस्कार को
हैलो हाय से बदल दिया, तो इसके दोषी क्या हम हैं ?
{06}
हमारे मजहब का लड़का कॉण्वेण्ट से आ कर भी
उर्दू अरबी सीख लेता है और
हमारी धार्मिक पुस्तक पढ़ने बैठ जाता है,
और आपका बच्चा न हिन्दू पाठशाला में पढ़ता है
और सँस्कृत तो छोड़िये,
शुद्ध हिन्दी भी उसे ठीक से नहीं आती,
क्या यह भी हमारी त्रुटि है ?
{07}
आपके पास तो सब कुछ था -
सँस्कृति, इतिहास, परम्पराएँ !
आपने उन सब को तथाकथित
आधुनिकता की अन्धी दौड़ में त्याग दिया
और हमने नहीं त्यागा बस इतना ही भेद है !
आप लोग ही तो पीछा छुड़ायें बैठे हैं अपनी जड़ों से !
हमने अपनी जड़ें न तो कल छोड़ी थीं
और न ही आज छोड़ने को राजी हैं !
{08}
आप लोगों को तो स्वयं ही तिलक, शिखा आदि से
और आपकी महिलाओं को भी माथे पर बिन्दी,
हाथ में चूड़ी और गले में मङ्गलसूत्र -
इन्हें धारण करना अनावश्यक लगने लगा ?
{09}
अपनी पहचान के सँरक्षण हेतु जागृत रहने की भावना
किसी भी सजीव समाज के लोगों के मन में
स्वत:स्फूर्त होनी चाहिये,
उसके लिये आपको अपने ही लोगों को कहना पड़ रहा है ।
{10}
जरा विचार कीजिये कि यह कितनी बड़ी विडम्बना है !
यह भी विचार कीजिये कि
अपनी सँस्कृति के लुप्त हो जाने का भय आता कहाँ से है
और असुरक्षा की भावना का वास्तविक कारण क्या है ?
हम हैं क्या❓
Удалить комментарий
Вы уверены, что хотите удалить этот комментарий?