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बोर्ड के इम्तिहान में ग्रेस अंक पाने के लिए हॉकी स्टिक थामने से लेकर मेजर ध्यानचंद के बाद पद्मभूषण पुरस्कार पाने वाले दूसरे हॉकी खिलाड़ी बनने तक; 'भारतीय हॉकी की दीवार' कहलाने वाले पराट्टू रवींद्रन श्रीजेश ने एक लंबा सफर तय किया है।
ऐतिहासिक उपलब्धि पाने के बाद अब उन्हें लगता है कि पिछले 20 सालों में भारतीय हॉकी के लिए उन्होंने जो कुछ भी किया, उससे कहीं ज्यादा देश ने उन्हें लौटाया है। भारत के महानतम गोलकीपरों में शुमार श्रीजेश को जब पता चला कि मेजर ध्यानचंद के बाद पद्मभूषण पुरस्कार पाने वाले वह दूसरे हॉकी खिलाड़ी हैं, तो इस उपलब्धि ने उन्हें भावुक कर दिया।
पिछले साल पेरिस ओलंपिक में लगातार दूसरा कांस्य जीतने के बाद खेल से विदा लेने वाले 36 वर्ष के इस महान पूर्व खिलाड़ी ने कहा, "मैंने पहला कॉल केरल में माता-पिता और पत्नी को किया जिनके बिना यह सफर संभव नहीं था। इसके बाद हरेंद्र सर को फोन किया जिनके मार्गदर्शन में मैंने भारत की जूनियर टीम में पदार्पण किया था।"
"मैं देश को धन्यवाद बोलना चाहता हूं। जितना मैने दिया, देश ने मुझे उससे ज्यादा लौटाया है।"
श्रीजेश ने कहा कि टीम खेलों में इस तरह से अलग पहचान बना पाना और प्रतिष्ठित पुरस्कार पाना आसान नहीं होता, लेकिन उनके सफर से उन्होंने यही सीखा है कि दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है।
तिरूवनंतपुरम के जीवी राजा स्पोटर्स स्कूल में 12 वर्ष की उम्र में पहली बार हॉकी खेलने वाले श्रीजेश कहते हैं, "यहाँ तक पहुँचने के लिए काफी बलिदान भी दिये, जैसे कम उम्र से घर-परिवार से दूर रहा लेकिन अब लग रहा है कि वे सभी बलिदान व्यर्थ नहीं गए। अपने सुनहरे सफर में मैंने यही सीखा कि अगर आपके भीतर इच्छाशक्ति है तो आप कुछ भी हासिल कर सकते हैं । सिर्फ कड़ी मेहनत करने की जरूरत है और यही सही तरीका भी है।"
बधाई हो, श्रीजेश।💙

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