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दुर्गासप्तशतीमें कथित रहस्यत्रय किसी उपलब्ध पुराण,तन्त्रमें प्राप्त नहीं होते ,अतैव वे किस ग्रन्थके भाग हैं ऐसी शंका हमें अनेक वर्षोंसे रही है, इस विषय पर अपना मत प्रस्तुत कर रहे हैं विद्वज्जन संशोधन करें।

हमारे अध्ययनके अनुसार उपरोक्त सभी कारणोंसे प्राधानिक,वैकृतिक एवं मूर्तिरहस्य मार्कण्डेयपुराणके ही अनुपलब्ध भाग प्रतीत होते हैं-
(१) सुरथराजाको पूजनका उपदेश एवं पूजनविधान दोनों एक ही प्रसंगमें बताना अधिक संगत होता है, एक ग्रन्थमें देवीपूजाका उपदेश एवं ग्रंथान्तरमें पूजनविधिका वर्णन उचित नहीं प्रतीत होता।
तामुपैहि महाराज शरणं परमेश्वरीम् ।
आराधिता सैव नृणां भोगस्वर्गापवर्गदा॥ (सप्तशती १३.९, मार्कण्डेयपुराण ९३.९) इत्यादि उपदेशके पश्चात ही पूजनविषयक आशंका भी बन सकती हैं।

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