चीन , यूरोप में कोरोना का कहर फिर से शुरू हो गया।
चीन पूरी दुनिया का उत्पादन केंद्र है। यदि कोरोना और भी फैलता है तो सभी देशों की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।
प्रकृति कि मार गहरी होती जा रही है। मार्च के महीने में मई वाली गर्मी पड़ रही है।
दो दिन में ही तापमान ऐसे बढ़ा है कि जैसे ज्वालामुखी फट गया हो।
वृक्ष , नदी , तालाब , जंगल विहीन धरती आग का गोला बन जायेगी।
विकास की परिभाषा फिर से परिभाषित होनी चाहिये।
उसके केंद्र में प्रकृति होनी चाहिये, नहीं तो समस्त मानवता घिस घिस कर मरेगी।।