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"बासी निमोना भात"
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हमारा बचपन और जाड़ा। उस दौर की कुछ गर्म यादें।
ठण्ड आते ही ताज़ी सब्जियों भरमार। इन्हीं में से मटर भी, मटर के आते ही निमोना का भयंकर वाला दौर चलता। जो नहीं जानते, उन्हें बस इतना बता दें कि ताज़ी हरी कच्ची मटर के दानों को सिल-बट्टे पर पीस कर उसी की गाढ़ी दाल सा एक व्यंजन बनता हैं जिसे हमारे अवध और पूर्वांचल में निमोना कहा जाता है। तो जाड़े भर खूब निमोना-भात या निमोना-रोटी खाई जाती।
लेकिन असली मज़ा इसमें नहीं था। असली मज़ा आज शाम को बच गए निमोना-भात को अगली सुबह गर्म कर खाने में था। जी हाँ, बासी निमोना-भात।
जाड़ा खूब पड़ता। ऐसे में कई-कई बार सुबह स्कूल जाते हुए ताज़ा भोजन तैयार न मिलता। तो रात का बासी निमोना और भात किसी बड़ी थाली (थरिया या टाठी) में मिलाकर सान लिया जाता। पास ही जल रहे कउड़ा/तपता/बोरसी पर थाली गर्म होने के लिए रख दी जाती। आधी आंच की लपट और आधे धुएं में वो बासी निमोना-भात गर्म होता। निमोना नीचे की परत से गर्म होते-होते ऊपर कहीं-कहीं खदबद-खदबद उबलने सा लगता। फिर उसमें घी डाला जाता घी पिघल कर पूरी थाली में फैलने लगता। फिर हम सब भाई-बहन या स्कूल जाने वाले इस्कूलिया बच्चे उसी थाली में एक साथ खाते।
लेकिन अभी भी मज़ा अधूरा होता, असली मज़ा तो थाली के निमोना-भात की उस अंतिम निचली परत में होता जो हल्का सा जल कर थाली की सतह से चिपक गया होता। कसम से उस करोनी या खुरचन वाले निमोना को पाने के लिए सभी बच्चों में मार हो जाती। बिलकुल अमृत सा सुवाद।
यही हमारा ब्रेकफास्ट, लंच या ब्रंच जो भी बोल दो, होता। यही खाकर हम भयानक वाले जाड़े में खेलते-कूदते रंग से स्कूल जाते। न कभी पेट दर्द, न उल्टी-दस्त। सब पच जाता।

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