स्कूल में एक बार गणित का क्लास टेस्ट हुआ। मेरी कोई खास तैयारी नहीं थी। मेरे उस टेस्ट में 10 में से 7 नम्बर आए। हालांकि मुझे बुरा लगा था पर यह पता था कि गलती मेरी ही है तो मैं चुप थी।
तभी मेरी गणित की टीचर डेरकी मैडम ने सबसे नम्बर पूछने शुरू किए। कुछ बच्चे 2 3 4 नम्बर भी लाए थे तो कुछ 9 और 10 भी।
जैसे ही मैडम ने मेरे नम्बर सुने वो बहुत तेज़ गुस्सा हो गई। मुझे बहुत डाँटने लगी। मुझसे कभी किसी टीचर ने तेज़ आवाज़ में बात नहीं की थी, डांटना तो बहुत दूर की बात थी। मुझे रोना आ गया। मुझे उस समय वो दुश्मन से कम नहीं लग रही थी। अपमान और गुस्से के साथ मैं सारा दिन चुप रही। और जब छुट्टी हुई तो घर मे घुसते ही सबसे पहले पापा के ऑफिस में गई।
पापा कुछ काम कर रहे थे और मैने जाते ही बोलना शुरू किया;
पापा आप अभी डेरकी मैडम को कॉल करो और उनको बोलो की वो मुझे ऐसे नहीं डांट सकती। सारी बात बताते बताते और भी मैने बहुत कुछ कहा पापा को...इन्फेक्ट अपमान का गुस्सा इतना था कि मैं चाह रही थी पापा अभी बाइक निकालें और हम मैडम के घर जाकर उनसे लड़कर आएं।
पापा चुप होकर सुनते रहे। जब मेरा सारा गुस्सा और रोना खत्म हुआ तो पापा ने कहा;
तू खुद कह रही कि 2 3 या 4 नम्बर वालों को मैडम ने नहीं डाँटा, तुझे डाँटा! क्योंकि उनको तुमसे आशा थी। वो जानती थी कि तुम इससे कहीं बेहतर परफॉर्म कर सकती हो। मैडम की तुझसे दुश्मनी नहीं बल्कि यह ज्यादा प्यार है। वरना तुम्हारे कितने भी नम्बर आएं मैडम को क्या फर्क पड़ता है? जैसे बाकी बच्चों के नम्बर से फर्क नहीं पड़ता। यही तो उनका स्नेह है जो तुमने कमाया है तुम्हे खुश होना चाहिए।
पापा की उस एक बात ने मेरे सोचने का नज़रिया बदल दिया। अगले दिन मुझे मैडम ने अपने पास बुलाया और वही बात दोहराई जो पापा ने कहा। उन्होंने मुझे गले से लगा लिया। और कहा कि उन्हें मुझपर भरोसा है कि मैं बहुत बेहतर कर सकती हूँ। एक बार फिर मैं रोइ, पर इस बार आँसुओं का कारण कुछ और था।
अब मुझे पता चल गया था कि मुझे क्या करना है। उसके बाद मैने बहुत मेहनत की और परीक्षा में 100 में से 100 अंक लाई। वो मेरे पहले पूर्ण नम्बर थे जिनका पूरा श्रेय डेरकी मैडम को जाता है। क्योंकि उसके बाद गणित मेरा प्रिय विषय हो गया था।
हमारे माता पिता हमारी सोच को विस्तृत और सकारात्मक रखते हैं जो हमारे जीवन मे सदैव काम आता है