राहत इंदौरी वो नाम है जो दिल्ली की सत्ता को कदम-कदम पे ललकारते थे ! सरकार चाहे किसी की भी हो ।।
"मेरे हुज़रे में नही और कहीं पे रख दो ..
आसमां लाये हो! ले आओ ज़मीं पे रख दो..
अब कहां ढूंढने जाओगे हमारे कातिल..
आप तो कत्ल का इल्ज़ाम हमीं पे रख दो ।
उनकी शायरी में रूहानियत , सूफियानापन , आशिकाना मिजाज के साथ-साथ अपने विद्रोही मिजाज के लिये जाने जाते थे।।
अगर खिलाफ है होने दो जान थोडी है ..
ये सब धुआं है कोई आसमान थोडी है..
लगेगी आग तो आयेंगे घर कई ज़द में..
यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोडी है ।
जो आज साहिब-ए-मसनद है कल नही होंगे..
किरायेदार है ज़ाति मकान थोडी है।
सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में ..
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोडी है।
