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वीर तुम अड़े रहो,
रजाई में पड़े रहो.....
*चाय* का मजा, मिले,
सिकी ब्रेड भी मिले।
यत्न कर निकाल लो,
ये काल,तुम निकाल लो।
तीक्ष्ण है, ये ठंड है,
यह बड़ी प्रचंड है।
हवा भी तेज आ रही,
धूप को डरा रही।
तू धूप की न आस कर
रजाई में निवास कर।
रजाईधारी Jitendra Singh 'दिनभर'

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