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तंत्र शिव उपासना का ही एक भाग है।
भारत में तो यह बहुत विकसित थी।
यहां तक कि इसके लिये शिक्षा केंद्र खोले गये थे।
प्रतिहार क्षत्रिय राजाओं द्वारा निर्मित
चौसठ योगनी मंदिर तंत्र विद्या का केंद्र था।
यहां छात्र अपनी साधना से सिद्धि प्राप्त करते थे।
दीपावली, दशहरा पर अपनी सिद्धि को जागृत करते थे।
ऐसा कहा जाता है, जँहा सिद्ध आत्मा रहती हैं, वह चमत्कारी प्रभाव रखती हैं।
यह विश्वास समाज में सदा रहा है, आज भी है।
रहस्यमयी घटनाएं, जीवन को जटिल बनाती हैं। हम उसको सुलझाना चाहते है। यह तंत्र का आधार है।
श्रीमती इंदिरा गाँधी तंत्र पर बहुत विश्वास करती थीं। उनके नजदीकी लोगों का कहना है, वह हर महत्वपूर्ण कार्य के पहले तांत्रिकों सलाह लेती थीं।
प्रधानमंत्री राव और चंद्रशेखर भी तांत्रिको के संपर्क में रहते थे। तांत्रिक चंद्रास्वामी का अनेक पूर्व प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों से सम्बंध थे।
तंत्र के एक विद्वान उद्धव बाबा, कहते थे तांत्रिकों को लालच, लोभ से दूर रहना चाहिये। नहीं तो सिद्धि नष्ट हो जाती है। उनका तंत्र उनके विरुद्ध काम करने लगता है।
जब हमने तंत्र को अंधविश्वास घोषित किया और समाज से बाहर फेंक दिया तो उनका स्थान फादरो, शिस्टरो और मजारों ने ले लिया। जबकि इसके पीछे न सिद्धि न ही तपस्या थी।
बागेश्वर धाम ऐसे सिद्ध योगियों का स्थान था। वर्तमान में जो है उनके विषय में ठीक से नहीं जानता। लेकिन यदि उन्होंने सिद्धि प्राप्त किया है तो संभव है कि योग्य हो ही।
यदि कोई तांत्रिक लोभ, लालच से दूर है तो उसके विरुद्ध कोई भी हो , कुछ कर नहीं सकता है।
अब विद्या लगभग विलुप्त हो चुकी है। इस पर कोई कार्य करता है तो प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
मुरैना जिले में यह महान रचना चौसठ योगनी मंदिर , अब खंडहर में बदल रही है। इसके उद्धार कि आवश्यकता है।

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