कभी कभी कुछ लोगों का कॉन्फिडेंस देखकर आश्चर्य होता है। कुछ लोगों को कुछ बातों के जवाब हाथोंहाथ वहीं...थोड़े स्पष्ट तरीके से या यूँ कहूँ तो मेरे लिए रूड, मगर किसी का मुँह बन्द करने के लिए पर्याप्त तरीके से देते हुए देखती हूँ तो लगता है, मैं ऐसा क्यों नहीं कर पाती?
कुछ लोग ओवर कॉन्फिडेंस वाले होते हैं। और अक्सर वही लोग ओवर कॉन्फिडेंट होते हैं जिनका दूर दूर तक परफेक्शन से कोई नाता नहीं।
ऐसे लोगों को देखकर आश्चर्य नहीं बल्कि हँसी आती है। लगता है भाईसाब जिंदगी तो यही लोग जी रहे! कुछ न होते हुए भी खुद को तुर्रम खां समझना और बाकी लोग को उन्हें ऐसा समझने के लिए मजबूर करना...उनके प्रिय शगल होते हैं।
दोनो स्थितियों में मैं हमेशा दर्शक दीर्घा में होती हूँ।
दूसरी स्थिति में स्वयं को उछल उछल कर श्रेष्ठ बताने वाले लोगों को ' वाह ' 'वाकई आप तो हैं ही कमाल' कर के उनकी एक्सपर्टी के किस्से सुनने के बजाय और तारीफ कर के स्वयं के लिए सुकून के पल तलाश लेती हूँ।
पर पहली स्थिति वाले लोगों को देखकर लगता है...इसके जैसा होना है मुझको। पर जब मेरी बारी आती है, तो मैं बस अपने जैसी हो पाती हूँ।
बाकी तो...