2 yıl - çevirmek

भारतीय दर्शन क्या कहता है। उसको समझने में बड़ी भूल हो जाती है।
यह क्रमिक विकास है, न कि कोई स्थूल विचार है।
किसी भी शास्त्र या दर्शन या आचार्य को सुनने के पूर्व या बाद में निर्णय लेने से पहले यह समझना होगा।
यह प्रयास कर रहा हूँ। इससे सरलता से समझा जा सकता है।
जैसे एक मंदिर है।
उस मंदिर में चप्पल पहनकर नहीं जा सकते है।
उस मंदिर का प्रबन्धनकर्ता, इसे लागू करने के लिये तख्ती लिखकर ढांग सकता है।
चप्पल पहनकर जाना वर्जित है।
या एक गार्ड खड़ा कर दे जो चप्पल पहनकर जो जाते है, उसे रोक दे।
भारतिय दर्शन इसे उत्तम उपाय नहीं कहता है। नियम बनाकर मूल्य पैदा नहीं किये जाते है। हृदय परिवर्तन न हुआ तो नियमो का कोई अर्थ नहीं है।
' मंदिर के प्रति लोगों में आस्था, भक्ति पैदा करिये जिससे लोग स्वतः ही चप्पल पहनकर अंदर न जाय। '
धर्म नियम बनाकर विकसित नहीं होता, हृदय में जागृति पैदा करने से होता है।
तख्ती लगाना, गार्ड लगाना सरल उपाय है। इसका कोई मूल्य भी नहीं है।
कभी तख्ती नहीं रही या गार्ड न रहा तो लोग चप्पल पहनकर घुस जायेंगे। लेकिन यदि मंदिर के प्रति आस्था है, श्रद्धा है तो किसी तख्ती या गार्ड कि आवश्यकता नहीं है।
बहुत सारे लोग तख्ती, गार्ड पर अटके हुये है। वह उसे निषेध और अनुमति के रूप में देखते है।
सदाचार से पहले धर्म है।
धर्म पाने के लिये सदाचार नहीं चाहिये।
धर्म होगा तो सदाचार स्वतः आ जायेगा।
--------जारी है।