यह सीढ़ियों से अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन नहीं गिर रहे हैं, वास्तव में अमेरिका की प्रतिष्ठा और उसकी डिप्लोमेसी लड़खड़ा चुकी है।
वह दृश्य देखकर पूरी दुनिया स्तब्ध थी, जब काबुल पर तालिबान आये और अमेरिकी सेना भाग रही थी।
75 अरब डॉलर का सैन्य सामान जिसमें अपाचे हेलीकॉप्टर, बख्तरबंद गाड़ियां, मशीनगनें, नाइटविजन राइफ़ल जैसे विकसित हथियार थे। यही बेचकर आज तालिबान पैसा कमा रहा है। ISIS फिर से पैदा हो रहा है। वह कायरों की भाँति बाइडेन की नीति भाग रही थी।
अमेरिका के लिये चीन नम्बर एक प्रतिद्वंद्वी है। लेकिन उसकी डिप्लोमेसी कि मूर्खता सामने आ चुकी है।
सभी जानते हैं कि रूस से युद्ध यूक्रेन नहीं लड़ रहा है, अमेरिका, यूरोप के देश लड़ रहे हैं। 146 अरब डॉलर के हथियार केवल अमेरिका ने यूक्रेन दिये हैं।
इस युद्ध का परिणाम यह रहा कि चीन और रूस करीब आ गये। इस युद्ध का सबसे अधिक लाभ चीन को मिला। जो रूस, चीन से दूरी बनाकर रखता था। उसने चीन को सस्ती दर पर तेल दिया और अपना बाजार खोल दिया। 190 अरब डॉलर का तेल चीन ने लिया है।
यदि भारत और चीन दोनों को मिला दें तो 250 अरब डॉलर रूस को मिले हैं। इतने बड़े युद्ध के बाद भी रूस की अर्थव्यवस्था, चीन और भारत कि वजह से प्रभावित नहीं हुई।
कल तो मध्यपूर्व एशिया की सबसे ऐतिहासिक घटना घटी, जब ईरान और सऊदी अरब ने समझौता कर लिया। इसको कराने वाला भी चीन है।
मध्यपूर्व एशिया में ईरान का भय दिखाकर, अपनी कूटनीति स्थापित करने वाला अमेरिका धराशायी हो गया।
कहते हैं, एक मूर्ख नेतृत्व आ जाय तो सैकड़ों वर्ष से बनी राष्ट्रों की प्रतिष्ठा धूल में मिल जाती है। वही काम बाइडेन ने अमेरिका के साथ किया है।
