तुम्हें क्या बताएं हम तुम्हारे लिए क्या-क्या छोड़ आए हैं
दहलीज पर रखते ही कदम तुम्हारी
अपना बचपन वहीं छोड़ आए हैं
तहजीब,सलीका,संस्कार तो सब साथ ले आए पर अपनी बेबाक अल्हड़ सी हंसी वहीं छोड़ आए हैं
विदाई के समय मां ने झोली भर भर की दी थी दुआएं वो तो साथ ले आए
पर बस अपनी मां का हाथ वही छोड़ आए हैं
शहर नया सा रिवायतें अलग सी लगती है यहां और इन गलियों से जब गुजरते हैं तो घुंघट साथ चलता है हमारे
वो हवा में मदमस्त उड़ता दुपट्टा वहीं छोड़ आए हैं
अब कस कर बनती है चोटी हमारी
वो खुली जुल्फों की कई अफसाने वहीं छोड़ आए हैं
बहुरिया नाम में दम तो बहुत है पर बिटिया शब्द की कसक वहीं छोड़ आए हैं
ताल्लुक नहीं रखते ज्यादा दोस्तों से अब
पर बहुत याद आती है वह चौपाटी की चाट जहां पानी पुरी के साथ ना जाने कितने किस्से अधूरे छोड़ आए हैं
छोटी सी सल्तनत थी हमारी जहां सुबह की चाय से लेकर रात के खाने तक की मर्जी हमारी चला करती थी
एक तेरी गुलामत के लिए हम अपनी हुकूमत वहीं छोड़ आए हैं
शादी में पापा ने दी थी रामायण कहा इसमें सीता है वो तो साथ ले आए
पर दादी की सुनी हजारों कहानियां वह छोड़ आए हैं
लहजे में अपने सलीके बेशुमार ले आए
पर जो लगती थी बेहद अपनी सी भाई बहनों के संग वो तू तड़ाक की जबान वहीं छोड़ आए हैं
अक्सर गहरी लग जाती है नींद रातों को हमारी जिम्मेदारियों को ओढ़ के बेपरवाही के रतजगे वहीं छोड़ आए हैं
और बहुत खूबसूरत है यह घर अपना पर इस दुनिया के लिए हमें एक पूरा जहान छोड़ आए हैं
Reality of life
