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मूंजी इण धर मोकला, दानी अण घण तोल।
अरियां धर देवै नहीं, सिर देवै बिन मोल।।
अर्थात राजपूताने की धरा में ऐसे कंजूस बहुत है जो दुश्मन को अपनी धरती किसी कीमत पर नहीं देते व ऐसे दानी भी अनगिनत है जो बिना किसी प्रतिकार के अपना मस्तक युद्ध-क्षेत्र में दान दे देते है।

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