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चलत शिलायें आ गई, गढ़न राम को रूप !
सीता जी संग में गढ़े, जिनका रूप अनूप !!
जिनका रूप अनूप, सजेगी जब ये जोड़ी !
दर्शन को आयेगी, दुनियाँ दौड़ी-दौड़ी !!
था मन में विश्वास दूर हुई सब बाधायें !
आखिरकार अयोध्या आई चलत शिलायें !!

जय जय सियाराम

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