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शामों को‌ बैठना, आसमान को देखना और यह सोचना कि कल हम भी वहां होंगे विरक्ति का अंतिम छोर है।
कितना बड़ा आसमान है,दुर तक चलती हल्की ठंडी हवा जो मन के जैसे प्रतिफल गतिमान उससे ऊपर सब खाली है।
रूई के फोहा कि तरह दिखते बादल और उससे ऊपर है चांद जो छोटी छोटी उधार की खुशियां को समेटे हुए है अभी तेरस की रात बाकी है ।
घने छायादार वृक्ष राक्षस मालुम होते हैं,हवा उनको चीरते हुए निकल रही है,यही जेठ की दोपहरी में कल्प वृक्ष का रूप धरा करेंगे और तब भी कोई महावीर के जैसे ज्ञान ना होगा सुस्ताने पर भरेंगे खालीपन ही।
पक्षी अभी सोये नहीं ,फसल कटाई का मौसम इनकी व्यापारिक सीजन है ,पास में ही थ्रेसर लगा है।
आप भी बाहर निकल कर देखना आसमान को आज नहीं तो कल। वह तो पुश्तैनी गांव मकान है सबका है अपना है और नित्य व शाश्वत है।
चित्र नाइटमोड में खींचा तो अंधेरे में भी तस्वीर अच्छी आई। बढ़िया तकनीक है, लेकिन आज बिजली नहीं आई तो इतना देखा,गुना और उकेरा।
बस और तो क्या .....शुभरात्रि

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