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श्री गणेशाय नम:

श्रीकृष्णाय नम:

श्री कृष्ण के अनमोल वचन(Conti..)

- यदि कोई बड़े से बड़ा दुराचारी भी अनन्य भक्ति भाव से मुझे भजता है, तो उसे भी साधु ही मानना चाहिए और वह शीघ्र ही धर्मात्मा हो जाता है तथा परम शान्ति को प्राप्त होता है।

- जैसे प्रज्वलित अग्नि लकड़ी को जला देती है; वैसे ही ज्ञान रुपी अग्नि कर्म के सारे बन्धनो को नष्ट कर देती है।

- अपने आप जो कुछ भी प्राप्त हो, उसमें सन्तुष्ट रहने वाला, ईर्ष्या से रहित, सफलता और असफलता में समभाव वाला कर्मयोगी कर्म करता हुआ, भी कर्म के बन्धनों में नहीं बँधता है।

- जो आशा रहित है जिसके मन और इन्द्रियां वश में है, जिसने सब प्रकार के स्वामित्व का परित्याग कर दिया है, ऐसा मनुष्य शरीर से कर्म करते हुए भी पाप को प्राप्त नहीं होता।

- काम ,क्रोध और लोभ यह चीजों को नरक की ओर ले जाने वाले तीन द्वार हैं।

- इन्द्रियां शरीर से श्रेष्ठ कही जाती है, इन्द्रियों से परे मन है और मन से परे बुद्धि है, और आत्मा बुद्धि से भी अत्यन्त श्रेष्ठ है।

- क्रमशः

हरि ॐ तत्सत्

ॐ गुं गुरुवे नम:

शुभ हों दिन रात सभी के

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