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ये एक अकेला क्रांतिकारी ब्रिटिशों की नींद उड़ाने के लिए काफी था
टंट्या मामा के शौर्य और साहस का गवाह है महू खण्डवा रेलवे ट्रेक,
इनके बीच के जंगल,
उसमे रहने वाले आदिवासी समेत समग्र समाज जो उन्हें आज भी भगवान की तरह पूजते है
आज पातालपानी एक पिकनिक स्पॉट के रूप में प्रसिद्ध है परंतु कम ही लोग जानते होंगे कि अंग्रेजो ने 4 दिसम्बर 1889 को जबलपुर सेंट्रल जेल में टंट्या मामा को फांसी देने के बाद इसी झरने में उनकी देह को फेंक दिया था
डरे हुए अंग्रेज जानते थे कहीं जनता उनके नायक का मृत शरीर देख कर छावनी में आग न लगा दें।
लंदन के अखबारों ने उन्हें इंडियन रॉबिनहुड कहा था परंतु तथाकथित भारतीय इतिहासकारों (लाल गुलामों) को मार्क्स, माओ के तलवे चाटने से फुर्सत नही मिली।
इसलिए टंट्या मामा को स्कूली पाठ्यक्रमों में पढ़ाया नहीं गया
स्वतन्त्रता, समता, स्वाभिमान, सम्मान और सांकृतिक पंरपराओं के रक्षा की आवाज है टंट्या मामा भील
सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, शैक्षणिक शोषण के विरुद्ध वंचित, पीड़ित, प्रताड़ित, उपहासित श्रमवीरों का काम पूरा होने तक #टंट्या_भील रूप बदल कर आते रहेंगे
जय हिंद
वंदे मातरम

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