हनुमान जी वानर है। वानर का अर्थ बंदर नही, बल्कि वन में रहने वाले नर को वानर कहा है।
वे शोषितों के देव है यानी शोषित कौन है ये समझना जरूरी है शोषित का अर्थ होता है जो राजा और समाज द्वारा तिरस्कृत हो, सताया गया हो। सुग्रीव, जिसे अपना राज्य छोड़कर राजा द्वारा तिरस्कार कर दिए जाने पर गुफाओं में शरण लेनी पड़ी वे वैसे शोषितों के देव है।
वे उपेक्षितों के देव है यानी उपेक्षित वो, जिसे हमारे समाज दूर-दूर तक कोई नाता नही, जो हमारे समाज से बिल्कुल कटा हुआ हो जिसे हमारे समाज ने कभी देखा ही ना हो, वो उपेक्षित है। वे उन्ही सुग्रीव जैसों के देव है यानी जो असहाय हो, निर्बल हो, सताया गया हो, तिरस्कृत हो वे वैसों के देव है।

हनुमान जी अतुलित बल के स्वामी थे वे स्वम् भी नही जानते थे कि उनके पास कितना बल है ये समझते है ..
दस हजार हाथियों में जितना बल होता है उतना बल इंद्र के ऐराबत हाथी में होता है और दस हजार ऐराबत हाथीयों में जितना बल होता है उतना बल एक इंद्र में होता है और दस हजार इन्द्रों में जितना बल होता है उतना बल हनुमान जी के हथेली की एक कनिष्ठ उंगली में थी।
इतने बल के स्वामी परंतु अभिमान तनिक भी नही, चेहरे में करुणा और आंखों में श्रीराम दर्शन के प्यास सदा झलकती रहती है।
एक छलांग में 12 योजन का विशाल समुद्र यानी एक योजन अर्थात 100 किलोमीटर तो 12×100= 1200 किलोमीटर एक छलांग में पार कर गए थे।
रावण अपने प्रिय पुत्र इंद्रजीत को हनुमान जी को बंदी बनाने के लिए कहता है। इंद्रजीत जैसा शक्तिशाली लंका में कोई दूसरा नही था वो आलौकित शक्तियों का भी स्वामी था उसके जैसा पृथ्वी पर कोई दूसरा नही था स्वम रावण भी नही था।
इन्द्रजीत अपनी समस्त शक्तियों से आघात करते हुए उन्हें बंदी बनाने का भरपूर प्रयास किया परंतु वो असफल रहा तब अपनी अंतिम शक्ति ब्रह्भास्त्र का प्रयोग किया। ब्रह्भा जी मान भंग ना हो इसलिए उन्होंने अपनी मर्जी से बंदी बनना स्वीकार किया था वरना तीनों लोकों में ऐसी कोई शक्ति नही जो उन्हें बंदी बना सकती है।
हनुमान जी के गति की भी कोई सीमा नही थी। जब भैया लक्ष्मण को शक्ति बाण लगी थी तब संजीवनी बूटी लाने हनुमान जी गए थे।
1200km समुद्र और कन्याकुमारी से हिमालय की दूरी 4000km यानी लगभग 5हजार किलोमीटर गए और रास्ते मे उन्होनें कालयवन जैसे राक्षस का भी वध किये और अयोध्या में भी घंटों भैया भरत के साथ रहने के बाबजूद उन्होंने सफलता पूर्वक बूटी सुसैन वैध तक पहुंचाई और उसी पर्वत को पुनः उसी स्थान पर वापस रख दिए और सूर्योदय होने से पहले वे वापस लंका भी आ गए। इतना कार्य उन्होंने मात्र एक रात्रि में सम्पूर्ण कर लिया था। तभी तो उनको कहा गया है- दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।
उनका निरंतर ध्यान करने वालों को वे अष्ट सिद्धि भी प्रदान करते है इसलिए उनको एक चौपाई में- अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता कहा गया है।
जिसका विस्तार से वर्णन मैं कल के लेख में कर चुकी हूँ
आज के वैज्ञानिक एयरक्राफ्ट 2500km प्रतिघंटे की रफ्तार से चलने वाली बनाई है परंतु हनुमान जी की गति आज के एयरक्राफ्ट से भी कई गुणा अधिक तेज थे।

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