बांस जलाने से वंश जलता है -
बांस नहीं जलाने का वैज्ञानिक कारण और अगरबत्ती जलाना क्यों अवैज्ञानिक हो गया है?
बांस का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। बांस एक बहु-उपयोगी लकड़ी है। घर, दुकान के छप्पर से लेकर खेत - खलिहान तक और विवाह के मंडप बनाने, टेंट लगाने से लेकर अर्थी सजाने तक हर जगह बांस बहुत उपयोगी साबित हुआ है। इसका महत्व तब और बढ जाता है जब कृष्ण इसकी बांसुरी बनाकर मधुर तान छेड़ते हैं और सारा जगत झूमने लगता है।
हमारे धर्म में बांस जलाने की मनाही है। बांस जलाऊ लकड़ी के रूप में बिलकुल ही अनुपयोगी है। हमारे पूर्वज कहते आये हैं कि "बांस को जलाने से वंश जलता है।"
अब बांस को जलाने से वंश के जलने का क्या संबंध है?
हमारे शास्त्रों ने या हमारे ऋषि-मुनियों ने जो भी महत्वपूर्ण बातें कही हैं, उसके पीछे अवश्य ही कोई न कोई वैज्ञानिक तथ्य छुपा होता है।
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने इस बात पर खोज की है, कि बांस को जलाने पर क्या परिणाम होते हैं? और अपनी खोज में उन्होंने यह पाया है कि बांस जलाने पर जो धुंआ होता है, वह धुंआ फेफड़ों से होकर जब खून में मिलता है, तो वह ऐसे तत्व छोड़ता है जो हमारी प्रजनन क्षमता को कम करता है। यानी आदमी को नपुंसकता की ओर धकेलता है।
बांस का धुंआ हमारी प्रजनन क्षमता को प्रभावित करता है। इसीलिए पुराने लोगों ने कहा है कि बांस को जलाने से वंश जलता है।
इसीलिए अगरबत्ती जलाना धार्मिक कार्य में नहीं आता है! क्योंकि अगरबत्ती में जो तीली (लकड़ी) होती है, वह बांस की बनी हुई होती है। यदि हम अगरबत्ती जलाते हैं तो साथ में बांस को भी जलाते हैं। और बांस को जलाना अर्थात अपना वंश जलाना है। और फिर अगरबत्ती का हमारे किसी शास्त्र में कोई उल्लेख नहीं मिलता है, सिर्फ धूप और दीया जलाने का ही उल्लेख मिलता है। दीये का उल्लेख भी प्रतीकात्मक रूप में है, यानी दीये को देखकर हमें अपने भीतर जलने वाले दीये अर्थात आत्मा का बोध होता रहे।
अगरबत्ती की खोज हमारे ऋषि-मुनियों ने नहीं की है। अगरबत्ती की खोज मंदिर के बाहर बैठे पूजा-सामग्री बेचने वाले लोगों ने की है, यदि हमारे ऋषि-मुनी अगरबत्ती की खोज करते तो वे इसमें बांस की तीली कदापि नहीं डालते! इसलिए हमें अपनी पूजा-अर्चना में अगरबत्ती से बचना चाहिए।

