कभी बे ख़्याल होकर यूं छू लिया जिंदगी ने,
हजारों लाख ख़्वाब देख डाले यहां बेख़ुदी ने ।।

कभी कभी लिखने को तो बहुत कुछ होता है पर समझ ही नहीं आता क्या लिखूं.....

दिल का दर्द लिखूं या दिल में भरा प्यार लिखूं, जिंदगी की गहराई लिखूं या जिंदगी के उतार चढ़ाव लिखूं, खुला आसमान लिखूं या धरती में दफ़न कोई राज लिखूं,समझ ही नहीं आता क्या लिखूं...दिल कहता है चल थोड़ा सुकून लिख, दिमाग कहता है किसी क्रांति का जुनून लिख लेकिन मुझे लिखना तो बकवास ही रहता है....

कभी उलझाती, कभी सुलझाती ये जिंदगी प्रतिदिन एक नई सीख देती जाती है। इंसान की औकात कुछ नहीं है, जो घट रहा ईष्ट का फरमान जानकर भी इंसान अनजान बन रहा है। जिंदगी जीने की जद्दोजहद में हलकान है, दर्द का चहुंओर बिखरा पड़ा समान है। थोड़ा ग़म और थोड़ी सी खुशी ही जिंदगी की पहचान है। वो तो हौसलों का सहारा है वरना जिंदगी कहां आसान है।

भावनात्मक मन से बंधा व्यवहारिक जीवन किसी भी जिंदगी की सबसे बड़ी विडंबना है और जिंदगी के प्रदत्त पाठ्यक्रम में ज्ञानी होकर अनुभवविहीन रह जाना सबसे दुखद पहलू है।

जीवन के भिन्न भिन्न पड़ाव बहुत से सबक सिखा कर जाते हैं, उनमें से कुछ अच्छे पड़ाव होते हैं और कुछ अच्छे नहीं होते हैं। जो पड़ाव अच्छे नहीं होते उनमें एक बात जरूर अच्छी होती है, वो मुलाक़ात कराते हैं उन इंसानो से जो ज़िंदगी के अहम किरदार बन जाते हैं।

ज़िन्दगी में ज़िन्दगी को खोजना ही ज़िन्दगी की सबसे बड़ी जद्दोजहद है। बहुत कम जिन्दा लोगों में ज़िन्दगी को देखा है, ज्यादातर तो बस सांसों की गिरहें खोलने में ही मसरूफ़ हैं।

पता है जिंदा होना क्या है, जिंदगी क्या है ?

“काफी कुछ करने के बाद भी लगे कि अभी भी कुछ करना बाकी है”।

मन में उत्पन्न वह असंतोष का भाव, सब कुछ पाने के बाद भी कुछ पीछे छूट जाने से मिलता अपूर्णता का एहसास, समग्र जिंदगी अपनो के साथ बिताई हो फिर भी एक छूट चुके का सहवास (साथ) पाने की वह एषणा।

“उस हरेक भाव को अपने अंत तक जी पाने की जिजीविषा है जिंदगी। टूटे धागो को जोड़ कर ख्वाब बुन लेने की हिम्मत है जिंदगी"

“अनंत महासागर की लहरों को कागज़ की नाव से एकलवीर की तरह पार करने की कोशिश में होना जिंदा होना है। कठिन से कठिन परिस्थिति में अपनी ही परछाई को मित्र बनाकर उसके कंधे पर रो लेना जिंदा होना है।”

मध्याह्न के सूर्य में स्वयं की परछाई को क्षीण करते तीव्र प्रकाश में अपने अंधकार को भूलता मन जब असीम शांति से बोल उठे कि,“ अबे! अभी जिंदा हो तुम"। यही जिंदा होना है, यही जिंदगी है, यही जीवन है।

और ये जीवन एक अजीब सा रंगमंच है, जहां सूत्रधार और कठपुतली दोनों की भूमिकाओं का निर्धारण परिस्थितियां करती हैं। किसी की भूमिका निश्चित और स्थाई नहीं है, आज जो कठपुतली है क्या पता कल वो ही सूत्रधार बन जाए इसलिए...

गुज़रते दौड़ते लम्हे, हिसाब में लिखिए,
हक़ीक़तों की तमन्ना भी ख्वाब में लिखिए।

सवाल बन कर उभरते हैं दर्द के सूरज,
सुकूँ का चाँद ही सब के जवाब में लिखिए।

हर एक हर्फ़ से जीने का फ़न नुमायाँ हो,
कुछ इस तरह की इबारत निसाब में लिखिए।

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