शिव महापुराण में भगवान शिव के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है। कहीं कहीं उनके 24 तो कहीं उन्नीस अवतारों के बारे में उल्लेख मिलता है। वैसे शिव के अंशावतार भी बहुत हुए हैं। हालांकि शिव के कुछ अवतार तंत्रमार्गी है तो कुछ दक्षिणमार्गी।
शिव के दसावतार:- 1. महाकाल, 2. तारा, 3. भुवनेश, 4. षोडश, 5. भैरव, 6. छिन्नमस्तक गिरिजा, 7. धूम्रवान, 8. बगलामुख, 9. मातंग और 10. कमल नामक अवतार हैं। ये दसों अवतार तंत्रशास्त्र से संबंधित हैं।
शिव के अन्य 11 अवतार जिन्हें रुद्र कहते हैं:- 1. कपाली, 2. पिंगल, 3. भीम, 4. विरुपाक्ष, 4. विलोहित, 6. शास्ता, 7. अजपाद, 8. आपिर्बुध्य, 9. शम्भू, 10.चण्ड तथा 11. भव।... उक्त रुद्रावतारों के कुछ शस्त्रों में भिन्न नाम भी मिलते हैं।
इन अवतारों के अलावा शिव के दुर्वासा, महेश, वृषभ, पिप्पलाद, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, अवधूतेश्वर, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, ब्रह्मचारी, सुनटनतर्क, द्विज, अश्वत्थामा, किरात, नतेश्वर और हनुमान आदि अवतारों का उल्लेख भी 'शिव पुराण' में हुआ है जिन्हें अंशावतार माना जाता है।
हालांकि भगवान शिव के 19 अवतारों की ज्यादा चर्चा होती है जो कि इस प्रकार हैं:-
1. वीरभद्र अवतार:- वीरभद्र को भगवान शिव का गण माना जाता है। यह अवतार उनकी जटा से उत्पन्न हुआ था। जब भगवान शिव के श्वसुर राजा दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती ने अपनी देह का त्याग कर दिया था तब क्रोधवश भगवान शिव ने अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे पर्वत के उपर पटक दिया। उस जटा के पूर्वभाग से महाभंयकर वीरभद्र प्रगट हुए। शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर शिव के सामने रख दिया था। बाद में भगवान शिव ने राजा दक्ष के सिर पर बकरे का सिर लगा कर उन्हें जिंदा कर दिया था।
2. पिप्पलाद अवतार:- कथा है कि पिप्पलाद ने देवताओं से पूछा- क्या कारण है कि मेरे पिता दधीचि जन्म से पूर्व ही मुझे छोड़कर चले गए? देवताओं ने बताया शनिग्रह की दृष्टि के कारण ही ऐसा कुयोग बना। पिप्पलाद यह सुनकर बड़े क्रोधित हुए। उन्होंने शनि को नक्षत्र मंडल से गिरने का श्राप दे दिया। श्राप के प्रभाव से शनि उसी समय आकाश से गिरने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ने शनि को इस बात पर क्षमा किया कि शनि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक किसी को कष्ट नहीं देंगे। तभी से पिप्पलाद का स्मरण करने मात्र से शनि की पीड़ा दूर हो जाती है।
3. नंदी अवतार:- कथा अनुसार शिलाद नामक एक मुनि ब्रह्मचारी थे। वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने शिलाद से संतान उत्पन्न करने को कहा। शिलाद ने अयोनिज और मृत्युहीन संतान की कामना से भगवान शिव की तपस्या की। तब शिव के वरदान से कुछ समय बाद भूमि जोतते समय शिलाद को भूमि से उत्पन्न एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। शिव ने नंदी को अपना गणाध्यक्ष बनाया। मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ नंदी का विवाह हुआ।
4. भैरव अवतार:- कथा अनुसार एक बार ब्रह्मा और विष्णु स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगे। इसी दौरान वहां तेज-पुंज के मध्य एक पुरुषाकृति दिखलाई पड़ी। उन्हें देखकर ब्रह्माजी ने कहा- चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो। अत: मेरी शरण में आ जाओ। ब्रह्मा की ऐसी बात सुनकर भगवान शिव को क्रोध आ गया। उन्होंने उस पुरुषाकृति से कहा- काल की भांति शोभित होने के कारण आप साक्षात कालराज हैं। भीषण होने से भैरव हैं। भगवान शंकर से इन वरों को प्राप्त कर कालभैरव ने अपनी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा के पांचवे सिर को काट दिया। ब्रह्मा का पांचवा सिर काटने के कारण भैरव ब्रह्महत्या के पाप से दोषी हो गए। काशी में भैरव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली। शिव महापुराण में भैरव को भगवान शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है।
5. अश्वत्थामा:- अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के अंशावतार थे। महाभारत में गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ही एकमात्र ऐसे योद्धा थे जो युद्ध को कोरवों के पक्ष में करने की क्षमता रखते थे, लेकिन उन्हें युद्ध के अंत में सेनापति बनाया गया था। द्रोणाचार्य ने भगवान शिव को पुत्र रूप में पाने की लिए घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसंन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया था कि वे उनके पुत्र के रूप में अवतीर्ण होंगे। समय आने पर सवन्तिक रुद्र ने अपने अंश से द्रोण के बलशाली पुत्र अश्वत्थामा के रूप में अवतार लिया। ऐसी मान्यता है कि अश्वत्थामा अमर हैं तथा वह आज भी धरती पर ही निवास करते हैं।
6.शरभावतार:- भगवान शिव का छटा अवतार है शरभावतार। शरभावतार में भगवान शंकर का स्वरूप आधा मृग तथा शेष शरभ पक्षी (पुराणों में वर्णित आठ पैरों वाला जंतु जो शेर से भी शक्तिशाली था) का था।
लिंगपुराण में शिव के शरभावतार की कथा है, उसके अनुसार हिरण्यकशिपु का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंहावतार लिया था। हिरण्यकशिपु के वध के पश्चात भी जब भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ तो देवता शिवजी के पास पहुंचे। तब भगवान शिव ने शरभावतार लिया और वे इसी रूप में भगवान नृसिंह के पास पहुंचे तथा उनकी स्तुति की, लेकिन नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत नहीं हुई। यह देखकर शरभ रूपी भगवान शिव अपनी पूंछ में नृसिंह को लपेटकर ले उड़े। तब कहीं जाकर भगवान नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत हुई। तब उन्होंने शरभावतार से क्षमा याचना कर अति विनम्र भाव से उनकी स्तुति की।