2 anni - Tradurre

रमई श्यामलाल हमारे यहां हरवाह थे। सुबह चार बजे दोनों लोग आ जाते। चार जोड़ी बैल थे। दो बीघा खेत जोतकर आ जाते।
फिर दोनों लोग पिताजी के साथ बैठकर दाना पानी करते। पिताजी के हम उम्र ही थे, उन्हें भईया कहते थे।
भईया सरसों बोना है, गेहूं बोना है। भराई करनी है।
ये कहिये कि रमई श्यामलाल ही देखते थे। उनको जो खेत मिला था, उसका आज वही वही नाम है। श्याम लाल वाला खेतवा।
समय बदला बैल कि जगह ट्रैक्टर हो गये। धीरे धीरे रमई, श्यामलाल भी बुढ़ा गये।
रमई के मेहरारू गदरा माई रहीं। हम उनको माई कहते थे। क्योंकि बचपन में वही हमको तेल मालिश करती थी।
श्यामलाल के लड़के ठीक ठाक कमा लेते थे। लेकिन रमई कि गरीबी वैसे ही थी। उनके दो तीन बच्चे हुये थे लेकिन जन्म के समय ही मर गये।
हरवाही खत्म हुये दशकों बीत गया था। लेकिन रमई के पूरे साल भर का अन्न उनके घर पिताजी भेज देते थे।
अब रमई चल फिर नहीं पाते थे। रीढ़ कि हड्डी में चोट लग गई थी। एक दिन गदरा माई घर आई।
पिताजी पूछे, का गदरी रमई ठीक है ?
बोली हां ठीक है। कह रहे थे अब पता नहीं कब तक जीवित रहे। एक बार भइया से मिल लेईत।
पिताजी कहे ठीक है। हम दो एक दिन में आई थ।
उस समय पिताजी स्वस्थ नहीं थे। फिर हमसे कहे कि चलो रमई को देख लेते हैं।
हम कहे, तबियत ठीक नहीं आपकी, हम रमई को गाड़ी में बिठाकर लेते आते हैं।
मेरी तरफ बड़े रुष्ट भाव से थोड़ी देर देखते रहे। फिर मुझसे कहे तुम्हारी भी गलती नहीं है।
शिष्टाचार में किसी के द्वार पर जाकर अथिति बनना और किसी को मिलने के लिये बुला लेने में अंतर होता है।
रमई, मुझसे मिलने से अधिक यह चाहते हैं कि मैं उसके द्वार पर जाऊं।
हम कहे तब ठीक है।
उनको लेकर रमई के यहां गये। रमई को पहले ही पता चल गया था।
वास्तव में जब मैं वहां पहुँचा तब समझे कि पहले के लोगों में कितना अपनत्व होता था।
पिताजी के लिये एक खटिया पर चद्दर डाली गई थी। राजाराम हलवाई के यहां से एक पाव मिठाई और पानी रखा था।
पिताजी बाहर से ही बुलाये रमई ?
रमई तो एकदम भाव विभोर हो गये। उनकी आँखें भर आईं थी।
रमई बोले भईया समझ ल मिलने के लिये प्राण ना निकलत रहा।
पिताजी फटकारते हुये बोले, चुप रहो। कौनो चीज के कमी है क्या। इस बार लग रहा दाल नहीं आई थी।
रमई बोले अरे भईया सब भरा है।
हम पहली बार देखे जब पिताजी किसी के द्वार पर बैठकर मीठा पानी पी रहे है। उनके ताम्र का लौटा गिलास हम सब नहीं छूते है। आज रमई के यहां बात चीत करते हुये पानी मीठा लिये।
आते समय रमई को कुछ पैसा दवाई के लिये दिये।
हमसे रास्ते में कहने लगे रमई बहुत मेहनती था। अकेले पूरी खेती कर लेता था। थोड़ा ध्यान रखना तुम लोग उसको खाने पीने कोई कमी ना हो।
हम उस समाज को सोचते हैं। कितना प्रेम भाव था। हम उनकी आलोचना करते हैं। ऐसे ऐसे लज्जाजनक आरोप लगाते हैं। जो थे ही नहीं।
आज ऑफिस में प्रतिदिन झाड़ू लगाने वाले को कोई पूछता नहीं, वह नमस्कार करे तो साहब लोग बोलते तक नहीं! इसे ही सम्भवतः आधुनिकता कहते हैं।

image