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अपनी प्राचीनता, सभ्यता, अतीत से जुड़े रहना गौरव से अधिक अस्तित्व के लिये आवश्यक है।
कोई शाखा कितनी भी हरी भरी क्यों न हो, वह अपनी जड़ों को काटकर जीवित नहीं रह सकती है।
आप जानते है संसार के हर कोने से पशु -पंछी माइग्रेशन करते है। वह हजारों किलोमीटर दूर साइबेरिया से भारत आ जाते हैं। सदियों से उनका यह माइग्रेन इसलिये संभव है कि पीढ़ी दर पीढ़ी उनको याद रहता है। उनको किन रास्तों से गुजरना है।
यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा , यदि यह संशय हो जाय कि कौन सा मार्ग चुनना चाहिये तो क्या करना उचित है ?
महाराज युधिष्ठिर ने कहा वही मार्ग उचित है। जिनसे हमारे महापुरुष गये होते हैं।
विषम से विषम परिस्थितियों से व्यक्ति, समाज , राष्ट्र निकल आता जब वह अपनी जड़ों से जुड़ा रहता है।
संस्कृति माला कि वह धागा है। जो सभी पुष्पों को जोड़कर रखती है। यह गौरव कि बात है हमारी एक ऐसी संस्कृति है जो समत्व में विश्वास करती है।
कथित पढ़े लिखे लोग अपनी छवियों में कैद रहते है। उन्हें अपनी संस्कृति का वर्णन करने में लज्जा आती है।
उपनिवेश बनाकर दुनिया पर अत्याचार करने वाले ब्रिटेन के राजा राज्याभिषेक करते है। दुनियाभर के देशों के प्रतिनिधि आते हैं। उन्हें लज्जा नहीं आती है।
हम उस संस्कृति से है।
जिसने कभी किसी पर युद्ध नहीं थोपा, किसी को उपनिवेश नहीं बनाया, किसी का बलात मत नहीं बदला, किसी के पूजाघर नहीं तोड़े तो हम क्यों लज्जित हो।
हमें तो गर्व होना चाहिये कि जब तक भारत है। तब तक मनुष्यता, सहअस्तित्व जीवित रहेगा।।

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