कुछ ऐसे ही घर हुआ करते थे गांव में।
आज भी हैं कई जगह।
चक्की एक काम अनेक
इसके गोल गोल घुमने के साथ इसकी आवाज़।
दोनों याद हैं मुझे
और ये आंगन जहां मिट्टी गोबर पिरी गार जिसे कहते हैं इसका लेपन , सुंदर सुंदर मांडने आकृति बहुत कुछ खो गया पीछे।
लेकिन यादें हमेशा साथ हैं।
क्या आपने भी बचपन में दादी और मां के साथ चक्की पीसी हैं ?
