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निश्छल व नि:स्वार्थ प्रेम का साकार रूप है यह तस्वीर!
जहां इंसानियत महज एक किताबी शब्द बन कर रह गई है वहां ये तस्वीर हमें झकझोरने के साथ बहुत कुछ सिखा भी जाती है। एक नन्हा भाई अपने दूसरे नन्हें भाई को झुलसाने वाली धूप से बचाने की कोशिश कर रहा है। प्यार, अपनापन, सहानुभूति और इंसानियत का पाठ सिखाती ये तस्वीर हमें खुद से ये सवाल करने पर मजबूर करती है कि क्या हम जीवन की भागम भाग में इतने आगे बढ़ गए कि अपनी संवेदनाओं को ही कहीं ताक पर रख आए? नाम और दाम के लालच में क्या हम इतने निष्ठुर हो गए कि यही भूल गए कि इंसान होना क्या है? क्या हम जब बाहर निकलते हैं तो भावनाओं को संदूक में बंद कर निकलते हैं और उनका पिटारा सिर्फ फेसबुक और ट्विटर पर ही खोलते हैं?
नहीं! यह इंसानियत नहीं, कोरी लफ्फाजी है। हमें चाहिए कि हम बच्चों से सीखें कि कैसे किसी की निश्छल व नि:स्वार्थ भाव से मदद की जाती है।

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