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'पोहा' दो अक्षर का यह शब्द जब बोला, सुना या पढ़ा जाता है तो पोहा प्रेमियों के मन मे एक छवि बनती हैं। ढेर सारी मिर्च और प्याज़ के साथ राई और सौंफ का तड़का लगाए, नींबू और चीनी की जुगलबंदी के साथ प्लेट भर के फरके फरके से पोहा, जिस पर ऊपर से हरा धनिया और ढेर सारी सेंव जिसे हम सेउ और बाकी लोग नमकीन कहते हैं।
पोहे के साथ चाय का कॉम्बिनेशन वैसा ही है जैसे बरसात और छाता जैसे नमक और टाटा जैसे जूते और बाटा!
हम एमपी वालों के लिए चाय-पोहा बस नाश्ता नहीं एक संस्कार हैं, एक धरोहर है जो पीढ़ी से पीढ़ी हस्तांतरित होता है। सुबह सुबह बाजारों में सजे ठेले पर हों, या घरों की रसोई में कांदे की महकती खुशबू के साथ बनते पोहे...सबकी पहली पसंद यही हैं।
जब एम्पियन बच्चे बाहर पढ़ने जाते हैं, तो होस्टल से लेकर होटलों तक, घर के कुक से लेकर पीजी वाली आंटी के बनाए खाने में 'अपने वाले पोहा ' का स्वाद ढूंढते हैं, पर अफसोस उन्हें मिलता है पोहे के नाम पर...गाजर, मटर, शिमला मिर्च, बिन्स और भी न जाने क्या क्या डाल कर बनाया हुआ, पुलाव रूपी पोहा!
जिसे देख रुलाई फूट पड़े कि भाई इसे कुछ भी कहो...बस पोहा मत कहो!
कुछ 'बाहरी संस्कृति' के लोग जब एमपी में आते हैं तो पोहा को देख के नाक सिकोड़ते हैं। ब्रेड बटर, आलू पराठा पर कॉन्सन्ट्रेट करते हैं। पर जब साल भर ये टिक जाते हैं तो अपने देशों, प्रदेशों और शहरों में पोहा प्रेमी बनकर जाते हैं।
एक बार एक परिचित का बेटा विदेश से पढ़कर आया। आते ही एक्सेंट के साथ उसने अपना नाश्ता भी बदल दिया। अब वो ब्रेकफास्ट में चीज़ी टोस्ट, बैक बेकन, मशरूम और एग्जॉटिक फ्रूट्स खाने लगा था।
परिचित जी कुछ दिन तो झेलते रहे...एक दिन पोहा खाते खाते जो दिमाग घुमा है उनका; अरे ऐसे कैसे संस्कार भूल गया लड़का??
फिर लड़के को छड़ी से जो छठी का दूध या यूँ कहें जो पोहा का कांदा याद दिलाया है...लड़का आजकल ब्रेकफास्ट लंच डिनर में बस पोहा खाता है।
हर बच्चे की बचपन की यादों में पोहा का किस्सा जरूर होता हैं। मुझे तो अक्सर अपने चाचा के हाथ के पोहे याद आते हैं, जो वो सिर्फ होली के दिन बनाते थे। घर की लेडीज़ को उस दिन छुट्टी मिलती थी। और किचन की जिम्मेदारी चाचा लेते थे।
सारे साल हमे चाचा के हाथ के पोहे का इंतजार होता था। संयुक्त परिवार की बड़ी सी रसोई और उसपर चढ़े कड़ाहे की खुशबू दूर तक फैलती थी। हम चाचा की शागिर्दी करते करते भी वैसे पोहा बनाना न सीख पाए!
ख़ैर...पोहा पुराण तो चंद पँक्तियों में समा नहीं सकती। हरि अनन्त और हरि कथा अनन्त जैसे ही पोहा कथा अनन्त हैं।
आज 'पोहा दिवस' है! आज के दिन हर पोहा प्रेमी को पोहा बनाना-खाना अनिवार्य है...सनद रहे!
बाकी तो...आल इज वेल!

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