मायण चौपाई सुंदरकांड अर्थ सहित 
जासु नाम जपि सुनहु भवानी। 
भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥ 
तासु दूत कि बंध तरु आवा। 
प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा॥ 
 
अर्थ : (शिवजी कहते हैं) हे भवानी सुनो – जिनका नाम जपकर ज्ञानी मनुष्य संसार रूपी जन्म-मरण के बंधन को काट डालते हैं, क्या उनका दूत किसी बंधन में बंध सकता है? लेकिन प्रभु के कार्य के लिए हनुमान जी ने स्वयं को शत्रु के हाथ से बंधवा लिया। 
 
रामायण चौपाई लिरिक्स अर्थ सहित 
एहि महँ रघुपति नाम उदारा। 
अति पावन पुरान श्रुति सारा॥ 
मंगल भवन अमंगल हारी। 
उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥ 
 
अर्थ : रामचरितमानस में श्री रघुनाथजी का उदार नाम है, जो अत्यन्त पवित्र है, वेद-पुराणों का सार है, मंगल (कल्याण) करने वाला और अमंगल को हरने वाला है, जिसे पार्वती जी सहित स्वयं भगवान शिव सदा जपा करते हैं। 
 
रामायण की चौपाई अर्थ सहित 
होइहि सोइ जो राम रचि राखा। 
को करि तर्क बढ़ावै साखा॥ 
अस कहि लगे जपन हरिनामा। 
गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा॥ 
 
अर्थ : जो कुछ राम ने रच रखा है, वही होगा। तर्क करके कौन शाखा (विस्तार) बढ़ावे। अर्थात इस विषय में तर्क करने से कोई लाभ नहीं।  (मन में) ऐसा कहकर भगवान शिव हरि का नाम जपने लगे और सती वहाँ गईं जहाँ सुख के धाम प्रभु राम थे।