पिछड़ों में स्वाभिमान की भावना पैदा करने और महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिलाने में अय्यंकालि जी की महती भूमिका है.
अय्यंकालि का जन्म तिरुवनंतपुरम् से 13 किलोमीटर दूर वेंगनूर में अछूत जाति पुलायार (पुलाया) में हुआ था. उनकी हैसियत भू-दास के समान थी. जमींदार लोग, मुख्यतः नायर, अपनी मर्जी से किसी भी पुलायार को काम में झोंक देते थे. सुबह से शाम तक काम करने के बाद उन्हें मिलता था, बामुश्किल 600 ग्राम चावल. कई बार वह भी गला-सड़ा होता था।
बचपन के अपमान की वजह से विद्रोही बन गए
अछूत होने के कारण अय्यंकालि को केवल अपनी जाति के बच्चों के साथ खेलने का अधिकार था. एक दिन फुटबॉल खेलते समय गेंद एक नायर के घर में जा गिरी. क्रोधित गृहस्वामी ने अय्यंकालि को डांटा और ऊंची जाति के बच्चों के करीब न आने की हिदायत दी. आहत अय्यंकालि ने भविष्य में किसी द्विज से दोस्ती न करने की ठान ली. उन्हीं दिनों उनका गाने-बजाने का शौक पैदा हुआ. लोक गीतों में रुचि बढ़ी. गीतों और नाटकों के माध्यम से वह समाज को जगाने का काम करने लगे.
सार्वजनिक सड़कों पर चलने का अधिकार
अय्यंकालि को बनी-बनाई लीक पर चलने की आदत न थी. 25 वर्ष की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते उन्होंने अपने ही जैसे युवाओं का मजबूत संगठन तैयार कर लिया था. 1889 में सार्वजनिक रास्तों पर चलने के अधिकार को लेकर आंदोलनरत अछूत युवाओं पर द्विज वर्ग ने हमला कर दिया. दोनों पक्षों के बीच जमकर संघर्ष हुआ. सड़कें खून से लाल हो गईं.
बैलगाड़ी से क्रांति
1893 में उनका गाड़ी पर सवार होकर सड़कों पर निकलना शताब्दियों पुरानी समाज व्यवस्था को चुनौती थी. सहसा कुछ द्विज वर्ग के लोगों ने आकर उनका मार्ग रोक लिया. एक पल की भी देर किए अय्यंकालि ने दरांत (धारदार हथियार) निकाल लिया. एक पुलायार से, जिसकी सामाजिक हैसियत दास जैसी थी, ऐसे विरोध की आशंका किसी को न थी. उपद्रवी सहमकर पीछे हट गए. अछूतों में आत्मविश्वास जगाने लिए अय्यंकालि का अगला कदम था
तिरुवनंतपुरम् में अछूत बस्ती से पुत्तन बाजार तक ‘आजादी के लिए यात्रा’ निकालना.
जैसे ही उनका काफिला सड़क पर पहुंचा, विरोधियों ने उन पर हमला कर दिया. सैकड़ों अछूत युवक, विरोधियों से जूझ पड़े. उस संघर्ष से प्रेरित होकर दूसरे कस्बों और गांवों के अछूत युवक भी सड़कों पर चलने की आजादी को लेकर निकल पड़े.
शिक्षा क्रांति
1904 में अय्यंकालि ने पुलायार और दूसरे अछूतों के शिक्षा के लिए वेंगनूर में पहला स्कूल खोला. परंतु द्विज वर्ग के लोगों से वह बर्दाश्त न हुआ. उन्होंने स्कूल पर हमला कर, उसे तहस-नहस कर दिया. बिना किसी विलंब के अय्यंकालि ने स्कूल का नया ढांचा खड़ा कर दिया. अध्यापक को सुरक्षित लाने-ले जाने के लिए रक्षक लगा दिए गए. तनाव और आशंकाओं के बीच स्कूल फिर चलने लगा.
1 मार्च 1910 को सरकार ने शिक्षा नीति पर कठोरता से पालन के आदेश दे दिए. शिक्षा निदेशक मिशेल स्वयं हालात का पता लगाने के लिए दौरे पर निकले. अछूत विद्यार्थियों को स्कूल में प्रवेश करते देख द्विज वर्ग के लोगों ने हंगामा कर दिया. उपद्रवी भीड़ ने मिशेल की जीप को आग लगा दी. फिर भी उस दिन आठ पुलायार छात्रों को प्रवेश मिला.
1912 में अय्यंकालि को ‘श्री मूलम पॉपुलर असेंबली’ का सदस्य चुन लिया गया. राजा और दीवान की उपस्थिति में अय्यंकालि ने जो पहला भाषण दिया, उसमें उन्होंने अछूतों के संपत्ति अधिकार, शिक्षा, राज्य की नौकरियों में विशेष आरक्षण दिए जाने और बेगार से मुक्ति की मांग की.
साधु जन परिपालन संघम
1907 में ‘साधु जन परिपालन संघम’ की स्थापना की. उसके प्रमुख संकल्प थे— प्रति सप्ताह कार्य दिवसों की संख्या 7 से घटाकर 6 पर सीमित करना. काम के दौरान मजूदरों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार से मुक्ति तथा मजदूरी में वृद्धि. इसके अलावा सामाजिक सुधार के कार्यक्रम, जैसे विशेष अदालतों तथा पुस्तकालय की स्थापना भी उसकी गतिविधियों का हिस्सा थे.
अय्यंकालि अछूतों की शिक्षा के लिए जी-तोड़ प्रयास कर रहे थे. कानून बन चुका था. सरकार साथ थी. मगर द्विज वर्ग के लोगों का विरोध जारी था. रूस की बोल्शेविक क्रांति से एक दशक पहले 1907 की घटना है. पुलायारों ने कहा कि जब तक उनके बच्चों को स्कूलों में प्रवेश और बाकी अवसर नहीं दिए जाते, वे खेतों में काम नहीं करेंगे. जमींदारों ने इस विरोध को हंसकर टाल दिया. मगर हड़ताल खिंचती चली गई. उसमें नौकरी को स्थायी करने, दंड से पहले जांच करने, सार्वजनिक मार्गों पर चलने की आज़ादी, परती और खाली पड़ी जमीन को उपजाऊ बनाने वाले को उसका मालिकाना हक देने जैसी मांगें भी शामिल होती गईं.
क्षुब्ध द्विज वर्ग के लोग पुलायारों को डराने-धमकाने लगे. मार-पीट की घटनाएं हुईं. लेकिन वे हड़ताल पर डटे रहे. धीरे-धीरे अछूतों के घर खाने की समस्या पैदा होने लगी. उसी समय अय्यंकालि ने एक उपाय किया. वे मछुआरों के पास गए. उनसे कहा कि वे एक-एक पुलायार को अपने साथ नाव पर रखें और बदले में दैनिक आय का एक हिस्सा उसे दें. गुस्साए जमींदारों ने पुलायारों की बस्ती में आग लगा दी.
अंततः जमींदारों को समझौते के लिए बाध्य होना पड़ा. सरकार ने कानून बनाकर पुलायार सहित दूसरे अछूतों के लिए शिक्षा में प्रवेश का रास्ता साफ कर दिया. मजदूरी में वृद्धि, सार्वजनिक मार्गों पर आने-जाने की आजादी जैसी मांगें भी मान ली गईं.
आदर्श जनप्रतिनिधि
पुलायार खेतिहार मजूदर के रूप में, बेगार की तरह अपनी सेवाएं प्रदान करते थे. भूस्वामी उन्हें कभी भी बाहर निकाल सकता था. ‘श्री मूलम् प्रजा सभा’ के सदस्य के रूप में अय्यंकालि ने मांग की कि पुलायारों को रहने के लिए आवास तथा खाली पड़ी जमीन उपलब्ध कराई जाए. फलस्वरूप सरकार ने 500 एकड़ भूमि आवंटित की जिसे 500 पुलायार परिवारों में, एक एकड़ प्रति परिवार बांट दिया गया. यह अय्यंकालि की बड़ी जीत थी.
