The Mysterious Machine of Dwarka
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समुद्र में डूबी द्वारका के अनेक मानव निर्मित वर्गाकार "कट-स्टोन", वर्तमान भारत के छद्म पुरातत्व और इतिहास के विचारों को एकदम उलट देती है। ये भारी भरकम "कट-स्टोन" द्वारका के आसपास तो नहीं मिलते। ये बहुत दूर राजस्थान के कोटा या फिर उदयपुर में ही मिलते हैं। इन भारी भरकम पत्थरों को यहाँ तक लाना एक चुनौती रही होगी। इन भारी भरकम पत्थरों के बीच में एक सुराख बनी है जिनमें कभी लोहे के तीक्ष्ण तलवार नुमा यन्त्र दीवार पर घूमा करती थी। भारत के प्राचीन संस्कृत इतिहास ग्रंथों में घूमने वाला तलवार अस्त्र की सूचना मिलती है। जो कोल्हू जैसे यन्त्र से जुड़े होते थे और पशु संचालित होते थे। ५००० से भी अधिक वर्षों में इन यंत्रों के पत्थर तो बच गए परन्तु यन्त्र में प्रयोग हुए लोहे और लकड़ी के पाट पुर्जे नष्ट हो गए।
द्वारका की पुरातत्व सम्पदा, विश्व भर के उन लोगों के लिए एक चुनौती है जो सिंधु घाटी सभ्यता के विषय में कार्य कर रहे हैं। उनकी वर्तमान धारणा और समझ, द्वारका के आगे बहुत छोटी और बौनी है। द्वारका डूबने के बाद यहाँ के लोगों ने जब हड़प्पा को अपना निवास बनाया तब इस तरह के यंत्रों की आवश्यकता वहाँ नहीं समझी गई।