अग्रसेन की बावली
Agrasen's Baoli
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सुबह के समय जब दिल्ली अमलतास के पीले फूलों से भर जाती है तब अग्रसेन की बावली में पक्षियों का कलरव कुछ अधिक सुनाई देती है। हल्की ग्रीष्म ऋतू का अनुभव होने लगता है और पक्षी यहाँ जल की खोज में आ जाते हैं। जल उन्हें यहाँ मिलता नहीं। अग्रोदय जिसे आज हम राखीगढ़ी का टीला कहते हैं, महाराज अग्रसेन का बसाया नगर है। इस बसे बसाये नगर को महाराज अग्रसेन ने छोटे भाई सूरसेन के लिए छोड़ दिया था। महाराज अग्रसेन ने अग्रोहा में पुनः एक नया नगर बसाया। दिल्ली की अग्रसेन की बावली महाभारतकालीन पुरावशेष है। यह उतनी ही पुरानी है जितनी प्राचीन द्वारका, इंद्रप्रस्थ के पास कुंती जी, भैरव जी या फिर राखीगढ़ी के टीले हैं। मध्यकाल में अग्रसेन की बावली के साथ छेड़खानी की गई।
महाभारत के समय यह बावली जल से परिपूर्ण रहती थी। मध्यकाल में भी यहाँ पानी की कमी नहीं थी।विभाजन के समय तक कुछ पुराने लोगों ने इस बावली के मीठे जल का अनुभव किया है। आज दिल्ली का पर्यावरण बदल चुका है। इस जलविहीन बावली की सुरक्षा सरकार नहीं करती क्योंकि यह महाभारत से जुड़ी स्मृति है। प्यासे पक्षी अभिशाप देंगें। महाराज अग्रसेन की स्मृति में इस बावली की सुरक्षा करें। इस बावली से दूर झाँकती "स्टेट्समैन की एक्सप्रेस टावर" इस प्राचीन परिसर को गंदा और विकृत कर देता है। कहाँ हैं मोनुमेंट्स ऑथोरिटी के लोग जिनके जिम्मे इस महाभारत के प्राचीन अवशेष को बचाने का जिम्मा है? महाभारत की आत्मा दिल्ली से लेकर द्वारका तक चीख चीख कर रो रही है। कोई सुनता है। जो बहरे हैं वे सुनते नहीं।