2 yrs - Translate

यमुना के तट पर टहलते कन्हैया से बलराम ने पूछा, "तो सोच लिया है कि तुम इस विषैले जल में उतरोगे? एक बार पुनः सोच लो कन्हैया! कालिया नाग अत्यंत विषैला है..."
कृष्ण ने गम्भीरता के साथ कहा, "जाना तो पड़ेगा दाऊ! जो आमजन की रक्षा के लिए स्वयं विष के समुद्र में भी उतरने का साहस कर सके, वही नायक होता है। और अपने युग की पीड़ा को दूर करने का प्रयास न करना अपने पौरुष का अपमान है। जाना तो पड़ेगा।"
बलराम ने बड़े भाई का दायित्व निभाते हुए रोकने का प्रयास किया, "पर कन्हैया! तुम ही क्यों? इस विपत्ति को टालने का कोई अन्य मार्ग भी तो होगा, हम वह क्यों नहीं ढूंढते?"
कन्हैया ने दृढ़ हो कर कहा, "कोई भी विपत्ति, 'वो प्राकॄतिक हो या व्यक्ति प्रायोजित' एक न एक दिन समाप्त अवश्य होती है। यदि मनुष्य अपने परिश्रम से उसे समाप्त न करे तो समय समाप्त करता है, पर विपत्ति समाप्त होती अवश्य है। पर भविष्य इतिहास के हर दुर्दिन के साथ यह भी स्मरण रखता है कि तब उससे उलझा कौन था। कौन लड़ा और कौन चुपचाप देखता या अपना काम करता रहा। हमारा जाना इसलिए भी आवश्यक है कि भविष्य में कभी इस तरह का विष फैले,तो तब के लोग आज से प्रेरणा ले कर उस विष को समाप्त करने के लिए लड़ें और अपने कालखण्ड को उस दुर्दिन से बाहर निकालें।"
बलराम ने कन्हैया को समझाने का प्रयास किया, " क्यों न हम गाँव से कुछ लोगों को बुला लें? आखिर उनका भी तो कर्तव्य है यह!"
कृष्ण मुस्कुराए।कहा, "यह मेरा युग है दाऊ!इस युग पर खड़े होने वाले प्रत्येक प्रश्न का उत्तर मुझे ही देना होगा।इस कालखण्ड की हर विपत्ति को दूर करना मेरा कर्तव्य है,मैं किसी अन्य की राह क्यों देखूं? मैं अपना कर्तव्य अवश्य पूरा करूँगा, क्योंकि इसीलिए तो आया हूँ।
बलराम ने फिर आपत्ति करनी चाही,"किन्तु कन्हैया..." पर कन्हैया ने उनकी बात काटते हुए कहा- "अब लीला न कीजिये भइया! लीला करना मेरा काम है। आप जानते हैं कि मैं जाऊंगा और शीघ्र ही उस दुष्ट को मार कर आऊंगा।आप अपना कार्य कीजिये,जाइये गाँव में..."
बलराम जी मुस्कुराते हुए गाँव की ओर मुड़े और कृष्ण यमुना के जल की ओर।कालिया नाग के आतंक की समाप्ति होनी थी सो हो गयी।कुछ ही क्षणों में कालिया के फन पर नाचते कन्हैया जब ऊपर आये तो समूचे गोकुल ने देखा,उनका कान्हा कृष्ण हो गया था।

image