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*गुरु की भक्ति से भगवत्प्राप्ति अपने आप हो जायगी। लेकिन हरि गुरु दोनों को साथ रखना चाहिये। इसलिये कि केवल गुरु की भक्ति करने में हमारी निष्ठा सदा दृढ़़ नहीं रह सकती। भगवान् तो प्रत्यक्ष है नहीं। जब भगवान् प्रत्यक्ष होता है तो उसमें भी दोष बुद्धि होती है हमारी। ऐसे ही गुरु में दोष बुद्धि होगी।*
*तो दोनों की भक्ति जब साथ-साथ करोगे तो मन शुद्ध होता जायगा और भगवान् की लीलाओं में भी मन जल्दी लगेगा। श्रीकृष्ण की बाल लीलायें हैं, अनेक प्रकार की लीलायें हैं जिसमें जैसी रुचि हो अपनी-अपनी रुचि के अनुसार मन का प्रेम होना चाहिये।*

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