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पिज़्ज़ा, बर्गर और कोल्डड्रिंक के बीच बचपन और छुट्टियाँ गुज़ारते बच्चे, क्या समझ पाएंगे दोना भर के खाए गए करूँदे, शहतूत, जामुन और खजूर का स्वाद?
रिमोट को हाथों में दबाए तेज़ी से चैनल बदलते यह बच्चे, कभी समझ नहीं पाएंगे वो इंतज़ार, जो रविवार को सुबह 9 बजे मिक्की एंड डोनाल्ड के लिए किया जाता था।
यूट्यूब के दौर में क्या यह विश्वास कर पाएंगे कि रस्सी कूदना, नदी पहाड़, लोहा लँगड़, चंगा अष्ठा और चोर सिपाही जैसे गेम गर्मियों की छुट्टियों की सबसे मजेदार यादें हुआ करती थी।
एक क्लिक पर क्रिकेट, फुटबॉल और सबवे रन खेलने वाले बच्चे हँसेंगे, जब वो सुनेंगे कि सिर्फ गुल्ली डंडा खेलने के लिए हम कई किलोमीटर पैदल चल कर जल्दी जाकर, अपनी टीम की गुच्छी की 'जगह रोकते' थे!
जब पहली बार मोबाइल हाथ मे आया था, तो ऐसा एहसास हुआ जो उस मोबाइल का स्लोगन था ' कर लो दुनिया मुट्ठी में' !
आज एप्पल, टैब और लैपि में उलझी जनरेशन उस खुशी को महसूस नहीं कर पाएगी, जो दो हजार के अपने 'पर्सनल' मोबाइल को पहली बार हाथ मे थामते हुए हुई थी!
'डिलीट फ़ॉर एवरीवन' के जमाने मे क्या जान पाएंगे एक टेक्स्ट और ईमेल के आने जाने पर दिल की धड़कन कैसे बढ जाती थी!
न ये कभी जान पाएंगे कि, सायबर कैफे से घर की टेबल पर पहुंच कर इंटरनेट जब फोन में पहुंचा...तो दुनिया कितनी आसान लगने लगी थी!
मुझे लगता है हमारी कच्ची उम्र की दहलीज पर खड़ी पक्की दोस्ती को तब ही सचेत हो जाना था, जब ऑरकुट ने अचानक हमारे स्कूल के दोस्तों को 'सोशल फ्रेंड' बना दिया था!
रिल्स, इंस्टा और ऑनलाइन पढ़ाई पर वक्त गुज़ारते बच्चे क्या कभी समझ पाएंगे, कि हम वो हैं जिन्होंने अपने पिता के बहीखाते भी बनाए हैं और बच्चों की पीपीटी भी! हम अब उनके जितने ही आधुनिक हैं, और जी भर के गंवारपन्ति वाला बचपन भी जी आए हैं, और हम ही हैं जिनके पास अपने माता पिता के लिए भी वक्त है, और बच्चे के लिए भी!
हम वो हैं जिन्होंने वक्त को सरकते हुए देखा हैं...हम वो हैं जो वक्त को भागते हुए देख रहे हैं।
गुजरी बातों को जस्ट चिल कहने वाले बच्चे, क्या गुजरी पीढ़ी को शुक्रिया कह पाएंगे?
बाकी तो...आल इज वेल!

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