केदारनाथ महादेव का वास, एक ऐसा स्थान जहाँ भक्ति और आध्यात्म का तेज भक्तों के सर पर भोले का जादू बनकर चढ़ता है! वहाँ पर लगातार बढ़ते रिल्स और नाचगाने से तंग आकर आखिरकार केदारनाथ मंदिर समिति को कड़े निर्देश लागू करने ही पड़े!

मुझे लगता है हर स्थान का अपना महत्व होता है, जो स्थान भक्ति का है, उसे भक्ति का ही रहने देना चाहिए! केवल वायरल होने के लिए कोई वहाँ कुत्ता लेकर जाता है, कोई अतरंगी कपड़े पहनकर, कोई मंदिर परिसर में ही नाचगान शुरू कर देता है तो कोई प्रपोज करने जाता है!

प्रपोज करने वाले के भाव कितने भी सुंदर हों पर उन्हें यह समझना चाहिए कि एफिल टॉवर और केदारनाथ में कितना बड़ा अंतर हैं! वह पिकनिक स्पॉट या बगीचा नहीं...आराधना और भक्ति का स्थान हैं।

अगर वाकई यह ईश्वर के समक्ष मात्र आग्रह, मनोकामना होती तो न कैमरे की आवश्यकता थी और न ही रिल्स बनाकर उसे वायरल करने की!

तेज़ आवाज़ में संगीत, नाच और वीडियो बनाकर हम अपने आध्यात्मिक ऊर्जा स्थलों को टूरिस्ट प्लेस बनाने पर तुले हैं।

मंदिर समिति के इस निर्णय का स्वागत है। आशा है अब कम से कम दूसरे मंदिरों में भी ऐसे कड़े निर्देश दिए जाएंगे! हाँ कुछ अति आधुनिक लोगों को यह सब बुरा लग सकता हैं, पर हमारे धाम, ज्योतिर्लिंग और मंदिरों की कुछ गरिमा है, कुछ प्रोटोकॉल है...कम से कम उसका ध्यान तो अवश्य रखना ही चाहिए!

महादेव का स्थल दर्शन स्थल हैं...प्रदर्शन स्थल नहीं!

बाकी तो...

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