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*****दुर्गासप्तशती*****
भाग २
कैसे शुरु करें दुर्गा सप्‍तशती का पाठ
शास्त्रों में दुर्गा सप्तशती के पाठ को नियमों का पालन करते हुए बहुत ही सावधानी से करने की सलाह दी जाती है। अगर दुर्गा सप्तशती का पाठ नियमों का पालन करते हुए पूरे विधि-विधान से किया जाए तो मनचाहे फल अवश्य मिलते हैं। नवरात्री के नौ दिनों में दुर्गा सप्तशती का पाठ करना अत्यंत शुभ माना गया है। अगर आप दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हुए नियमों का पालन नहीं करते तो आपको इसके भयानक परिणाम भी प्राप्त हो सकते हैं:-
मॉं दुर्गा के सप्तशती पाठ को शुरु करने से पहले आपको किसी पवित्र स्थान से मिट्टी लाकर एक वेदी बनानी चाहिए और उसमें जौ और गेहूं बोने चाहिए। आपके द्वारा किया गया माता का पाठ कितना फलदायक या कितना सार्थक साबित हुआ इसका अंदाजा इन जौ और गेंहुओं के अंकुरित होने के अनुसार लगाया जाता है। अर्थात गेंहूं और जौ यदि शीघ्रता से अंकुरित हों तो इससे यह संकेत मिलता है कि हमारा दुर्गा पाठ सही दिशा में जा रहा है और इससे हमें अच्छे फल प्राप्त होंगे।
इसके उपरांत वेदी के ऊपर कलश की स्थापना पंचोपचार विधि से करनी चाहिए।
तदोपरांत कलश के ऊपर मूर्ति की प्रतिष्ठा पंचोपचार विधि से करनी चाहिए।
माता का पूजन करते समय आपको सात्विक भोजन करना चाहिए। इस दौरान आपको मांस-मदिरा जैसी चीजों से बिलकुल दूर रहना चाहिए।
व्रत के आरंभ में स्वस्ति वाचक शांति पाठ करने के बाद हाथ की अंजुली में जल भरकर दुर्गा पाठ शुरु करने का संकल्प लेना चाहिए।
इसके बाद भगवान गणेश की पूजा के साथ-साथ लोकपाल, नवग्रह एवं वरुण का पूजन विधि पूर्वक करना चाहिए।
इसके बाद मॉं दुर्गा का षोडशोपचार पूजन करें।
अब पूरी श्रद्धा के साथ मॉं दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
दुर्गा-सप्‍तशती के पाठ की विधि
भारत के धर्म शास्त्रों में दुर्गा सप्तशती का पाठ करने की कई विधियों का जिक्र मिलता है जिनमें से दो विधियां सबसे ज्यादा प्रचलित हैं। इनका विवरण नीचे दिया गया है:-
प्रथम विधि
दुर्गा सप्तशती की इस पाठ विधि में नौ ब्राह्मण साधारण विधि के द्वारा पाठ आरंभ करते हैं। अर्थात इस विधि में केवल पाठ किया जाता है, पाठ के समाप्त होने पर हवन आदि नहीं किया जाता।
इस विधि में एक ब्राह्मण द्वारा दुर्गा सप्तशती का आधा पाठ किया जाता है। इस आधे पाठ को करने से ही संपूर्ण पाठ की पूर्णता मानी जाती है। जबकि इसमें एक अन्य ब्राह्मण द्वारा षडंग रुद्राष्टाध्यायी का पाठ विधि पूर्वक किया जाता है।
दूसरी विधि
दुर्गा सप्तशती का पाठ करने की दूसरी विधि अत्यंत सरल है। इस विधि में एक दिन एक पाठ (पहला अध्याय), दूसरे दिन दूसरा और तीसरा अध्याय, तीसरे दिन चौथा अध्याय, चौथे दिन पंचम, षष्ठम, सप्तम और अष्टम अध्याय, पांचवें दिन नवम और दशम अध्याय, छठे दिन एकादश अध्याय, सातवें दिन द्वादश और त्रयोदश अध्याय करने से सप्तशती की एक आवृती पूरी हो जाती है। इस विधि से दुर्गा सप्तशती का पाठ करने पर आठवें दिन हवन और नवें दिन पूर्ण आहुति की जाती है।
अगर आप बिना रुके दुर्गा सप्तशती का पाठ कर सकते हैं तो त्रिकाल संध्या के रुप में पाठ को आप तीन हिस्सों में विभाजित करके इसका पाठ कर सकते हैं।

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