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*ओवर कान्फिडेंस न करें।*
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शुकदेव परमहंस ने तीन ही भक्ति बताई हैं, प्रमुख । 'श्रोतव्योः' श्रवण करना।
*श्रोतव्यः कीर्तितव्यश्च स्मर्तव्यश्चेच्छताभयम्।।* (भागवत २.१.५)

कीर्तन और 'स्मर्तव्यश्चेच्छताभयम्' स्मरण यही तीन भक्ति हम भी आप लोगों को बताते हैं। आप लोग जो प्रवचन सुनते हैं- श्रीकृष्ण कौन हैं, हम कौन हैं, हमारा श्रीकृष्ण से क्या लेना-देना है, हम क्या चाहते हैं, वो कहाँ मिलेगा, हम कौन हैं, कहाँ से आये हैं, ये संसार क्या है? ये तमाम ज्ञान बहुत-बहुत बहुत-बहुत आवश्यक है। इसके बिना गाड़ी ही नहीं चलेगी। जैसे खाना आप लोग रोज रोटी, दाल, चावल, तरकारी खाते हैं, उसके बनाने की विधि जानना पड़ेगा तभी तो आप बनायेंगे, नहीं तो खीर में नमक डाल देंगे। सब अण्ड-बण्ड करेंगे फिर तो, पागल की तरह। कहीं भी संसारी मामले में भी थिअरि (Theory) की नॉलिज सबसे आवश्यक है और प्रथम तो भगवान् का विषय तो परोक्ष है। वो तो बहुत ही आवश्यक है।

*सिद्धांत बलिया चित्ते ना कर आलस।*

महाप्रभु जी ने कहा- सिद्धान्त ज्ञान में आलस्य नहीं करना। एक बात और कि जब आप लोग सुनते हैं कोई विषय तो अगर ध्यान से सुनते हैं तो रियलाइज करते हैं, हाँ आ गया, समझ में आ गया। लेकिन फिर गलती ये करते हैं कि ये ओवर कॉन्फिडेन्स आपके भीतर पैदा हो जाता है, अब चिन्तन की जरूरत नहीं, आ गया । अरे आ वा नहीं गया वो फिर चला गया हो जायगा। आपकी मेमोरी बहुत कमजोर है, दो घण्टे की बात भूल जाती है। तो इसके लिये वेदान्त ने एक सूत्र बना दिया *- आवृत्तिरसकृदुपदेशात्।* (ब्रह्म सू. ४.१.१)

बार-बार आवृत्ति माने सुनो ये श्रवण भक्ति, बार-बार सुनो और फिर चिन्तन करो, तब पक्का होगा। ये तमाम जन्मों का बिगड़ा हुआ ये मन है, बुद्धि है। फिर संसार में चला जाता है और वो भूल जाता है। अरे! मोटी-सी बुद्धि की बात सोचो कि हमारे देश में कम से कम नाइन्टी नाइन परसेन्ट लोग ये सुनते, पढ़ते और कहते हैं कि हम जानते भी हैं। क्या? भगवान् सबके हृदय में रहता है। भगवान् सबके हृदय में रहता है और सर्वव्यापक भी है? हाँ। लेकिन प्रैक्टीकल में मानने वाले कितने हैं? हमारे ही देश में एक अरब की आबादी में सौ भी नहीं मिलेंगे ढूँढ़ने से। आप कहेंगे हम तो ये रियलाइज करते हैं। कितनी देर? चौबीस घण्टे आप रियलाइज करते हैं न, पुरुष शरीर वाले, हम पुरुष हैं। आपने कभी ये रियलाइज नहीं किया, हम पुरुष हैं कि स्त्री हैं। कोई डाउट। नहीं जी, पक्का मालूम है। और पुरुष ही नहीं हम पंजाबी हैं, बंगाली हैं, मद्रासी हैं, सबका पक्का ज्ञान, हर समय है।

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