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तस्वीर में दिखाई दे रहे विंध्य में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति के सूत्रधार, रीवा के मनकहरी गांव के महान क्रांतिकारी ठाकुर रणमत सिंह बघेल हैं।
उन्होंने पहला युद्ध नागौद के पास भेलसांय में अंग्रेजों से लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद नयागांव में अंग्रेजों की छावनी में हमला बोला था। चित्रकूट हनुमान धारा में साधु-संतों के साथ मिलकर भी उन्होंने अंग्रेजों से युद्ध लड़ा। इसमें कई साधु-संतों वीरगति का प्राप्त हुए थे। ठाकुर रणमत सिंह गंभीर रूप से घायल हुए, लेकिन अंग्रेजों के हाथ नहीं आए।
1857 के संग्राम के दौरान अंग्रेजों को खदेड़ने की घटनाएँ केवल दिल्‍ली, मेरठ या कानपुर के आसपास ही घटित नहीं हुई थीं, बल्कि मध्‍यप्रदेश के बघेलखण्‍ड़ में सुदूर क्षेत्र में भी कई राजघराने व आम लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। ऐसे कई क्रांतिकारियों के नाम इतिहास के पन्‍नों में उतने चर्चित नहीं हुए, जितना उनका योगदान था। जिन्‍होंने अंग्रेजी सरकार को भारत से खदेड़ने और स्‍वाधीनता के लिये संघर्ष किया है। 1857 स्‍वतंत्रता संग्राम में मध्यप्रदेश के सतना जिले के मनकहरी ग्राम निवासी ठाकुर रणमत सिंह ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। वे महाराजा रघुराज सिंह के समकालीन थे। रघुराज इन्हें काकू कहा करते थे। रणमत सिंह को रीवा की सेना में सरदार का स्थान मिला था। ठाकुर रणमत सिंह रीवा और पन्ना के बीच का क्षेत्र बुंदेलों से मुक्त कराने में उभरकर सामने आए।
मई, 1858 में रणमत सिंह, फरजंदअली सहित झाँसी की रानी की सहायता करने हेतु तीन सौ साथियों सहित कालपी के युद्ध में उपस्थित थे। वह तीन-चार दिन ठहरे। लेकिन झाँसी की रानी की पराजय हुई। रानी को ग्वालियर की ओर पलायन करना पड़ा और रणमत सिंह बुन्देलखण्ड लौट लौट आये।
स्‍वतंत्रता सेनानी बन जाने पर रणमत सिंह अपना दल गठित किये, जिसमें छह-सात सौ साथी थे। उनके दल की शक्ति लगातार बढ़ने लगी। फौज़ में अजायब सिंह, बिहारी सिंह, जगरूप सिंह, आरंग सिंह एवं कोठी रियासत के ही करीब दो सौ आदमी थे। इनके अतिरिक्त आसपास से भी कई सरदार तथा अन्य व्यक्ति रणमत सिंह की फौज में शामिल हुए। ब्रिटिश सरकार उनसे आतंकित होने लगी।उन्हें क्रांतिकारी घोषित कर दिया। पकड़ने के लिए दो हजार रुपये इनाम की घोषणा की गई। रणमत के साथ रीवा रियासत के सरदारों में पंजाब सिंह, धीर सिंह एवं श्याम सिंह प्रमुख थे। कोठी रयासत के ही दल्ला गौंड, इन्दुल व्यास, भरत सिंह आदि भी अपने साथियों सहित आ मिले, जिनमें दोसे खाँ, रघुवीर, कासीनाथ, पहलवान खाँ व्यापारी, आरेंग रासी भी थे। नागौद के परमानंद बानिया, कुरबान अली, माधौगढ़ थाना के रामनाथ, मौजा नासे (माधौगढ़) का प्रणी, हाली (माधौगढ़) का काली सिंह, हटा (माधौगढ़) का मान सिंह राजपूत, (माधौगढ़) खास का सरबजीत सिंह, हरद्वोर, हल्‍दोर (माधौगढ़) का अधैत सिंह, मनकहरी के महाबत सिंह तथा भागदा भी रणमत सिंह के दल के सदस्य थे।

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