हम में से लगभग सभी सनातनी हिन्दू ये जानते हैं कि हिरणकश्यप ने भक्त प्रह्लाद को जलाकर मारने की कोशिश की थी लेकिन भगवान की इच्छा से भक्त
प्रह्लाद बच गए और होलिका मारी गई. उसी घटना के याद में हमलोग होलिका दहन करते हैं एवं उसके अगले दिन होली का त्योहार मनाते हैं.
लेकिन, क्या आप जानते हैं कि आखिर ये घटना हुई कहाँ थी ?
असल में ये एक सच्ची घटना है और ये घटना उत्तर प्रदेश के हरदोई में हुई थी. उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले को लेकर माना जाता है कि आधुनिक होली के बीज इसी शहर से पड़े थे.आज की हरदोई को तब हिरण्यकश्यप की नगरी के नाम से जाना जाता था.
हां,वही हिरण्यकश्यप जो खुद को भगवान से बड़ा
बताने लगा था.सबसे पहले ये जान लीजिए कि #हरदोई नाम कैसे पड़ा.
असल में ये हरदोई नाम ... #हरिद्रोही का अपभ्रंश नाम है. हरि-द्रोही का मतलब था भगवान का शत्रु. चूंकि.... हिरण्यकश्यप भगवान को बिलकुल नहीं
मानता था.इसीलिए हिरण्यकश्यप की राजधानी का नाम
#हरीद्रोही था.... जो अपभ्रंश होकर आज #हरदोई
नाम से जाना जाता है.
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हिरण्यकश्यप ने बहन होलिका से बेटे प्रह्लाद को लेकर अग्निकुंड में बैठने के लिए कहा, जिससे प्रह्लाद जलकर भस्म हो जाए.लेकिन भगवान की कृपा से हुआ उल्टा यानि होलिका जब प्रह्लाद को लेकर अग्निकुंड में बैठीं तो उसकी शक्ति कमजोर पड़ गई... जिसके बाद होलिका खुद जलकर राख हो गई
और भक्त प्रह्लाद बच गए.होलिका के जलने के बाद भगवान विष्णु ने नरसिंह का अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध कर दिया. होलिका के जलने और हिरण्यकश्यप के वध के बाद लोगों ने यहां होलिका की राख को उड़ाकर उत्सव मनाया.
कहा जाता है कि आधुनिक समय में अबीर-गुलाल
उड़ाने की परंपरा की शुरुआत यहीं से शुरू हुई.
#साभार:
ॐ नमो नारायनाय जय नरसिंह भगवान...!!
जय महाकाल...!!!
नोट : कुछ लोगों की मान्यता है कि इस जगह का
नाम हरदोई इसीलिए पड़ा है क्योंकि यहाँ पर श्रीहरि
ने दो बार अवतार लिया है इसीलिए इसे "हर द्वेई"
कहा जाता था जो अब अपभ्रंश होकर हरदोई हो
गया है.
संलग्न चित्र हिरणकश्यप के महल का खंडहर है
और इसमें जो खंबा है ... माना जाता है कि इसी
खंबे को फाड़कर भगवान नरसिंह ने अवतार
लिया था.
ॐ नमो नारायणाय💐
